परम्पराओं के नाम पर ज़ारी है अधार्मिक और अवैज्ञानिक कार्य

कुछ प्रथाएं ऐसी हैं जो धर्म या परंपरा के नाम पर हज़ारो सालों से ज़ारी हैं, लेकिन जो वस्तुतः घोर अधार्मिक और अवैज्ञानिक हैं। बंद जलाशयों या तालाबों में मछलियों को आटा खिलाना उनमें सर्वाधिक प्रचलित प्रथा है। किसी भी धार्मिक स्थल पर तालाबों में ऐसा करते सैकड़ों लोग आपको मिल जाएंगे।

नेता तुम्हीं हो कल के….

सामाजिक सरोकार से जुड़े हुए प्रशिक्षित योग्य व्यक्ति अगर मुख्यधारा में नहीं आए तो फिर राजनीति जैसे पवित्र शब्द को लोग गाली समझते रहेंगे । और हमने मिथिला के सैकड़ों युवाओं को प्रशिक्षित किया है वो परिपक्व हो रहें है ।

“आंधियों में भी दीये जलाने” की क्षमता उनमें थी

अटल जी अब नहीं रहे। मन नहीं मानता। अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं। मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं।

दया वाली भीख मत दीजिए ! भरोसा करना सीखिए

एक नन्हीं सी जान जो इतनी नाजुक होती है, जैसे ओस की बूंदे इतनी खूबसूरत जैसे सर्दी की धूप । ईश्वर की वह रचना जिससे इस सृष्टि का सृजन होता है, वह बेटी होती है, पत्नी होती है, बहन होती है, मां होती है, और दोस्त भी । फिर उस बेटी, बहन, मां और दोस्त के साथ गलत कौन और क्यों करता है ? हम हर दिन देख रहे हैं। हर क्षण एक स्त्री की गरिमा को धूमिल किया जा रहा है।

जानिए हम कितने सहिष्णु हैं ?

हम सब पूरे खलिहर हैं । एक बार और ये बात साबित कर दिये । पता नहीं क्यों हम एक सड़क छाप मुद्दे को राष्ट्रीय विपत्ति बनाने पर तूल जाते हैं । फेसबूक पे दो खेमा है…

आ बैल मुझे मार – अविनाश

हमारे यहाँ जिंदगी कॉस्ट कटिंग से शुरू होती है और कॉस्ट कटिंग से लेकर सेविंग तक जाकर खत्म हो जाती है । घर-घर की यही कहानी है । ना जाने यहाँ इंसान पैदा होने से लेकर मरते दम तक खोया-खोया  सा रहता है ।

हम मिथिला के विकास के लिये माँगते हैं

अब कानों को सुनने से तो नहीं रोक लीजिएगा, तो हमने भी सुन लिया । यूं ही चलते चलते कोई कह रहा था कि हम मांगते हैं । जी हाँ पैसा । जब कानों ने सुन ही लिया तो दिल और दिमाग पर क्या बिता होगा वह तो पता नहीं लेकिन बता दूं…

घर में लटकते ताले मानो मुंह चिढ़ा रहें हैं

लगता है मैं ही बदल गया ! नहीं – नहीं यह घर ही बदल गया । अब घर के गेट पर ताले लटके हुए मिलते हैं । पहले तो ऐसा नहीं था । तो फिर मैं सही हूँ न ! घर ही बदला मैं नहीं । सही में यह घर ही बदल गया ।

छठ के बाद का पंचायत

छठ के अगले ही दिन आप देखियेगा मिथिला के हर दलान पर फिर पंचायत बैठेगी । मुद्दा वही भाई-भाई के बीच जमीन जायदाद का बंटबारा, धुर कट्ठा जमीन के लिये पंचायती, गाली गलोज से लेकर मारपीट तक !

मानने से क्या होता है, बेटा तो चाहिये

बातचीत की शुरूआत मैंने ही की थी । सप्ताह भर का साथ, हमेशा मुस्कुराता हुआ चेहरा और मेरे चुहलपन ने एक नाता सा जोड़ दिया था । दोपहर में फुर्सत के क्षण में साथ बैठे तो मेरे मन में यूँ ही..