छठ के बाद का पंचायत

छठ के अगले ही दिन आप देखियेगा मिथिला के हर दलान पर फिर पंचायत बैठेगी । मुद्दा वही भाई-भाई के बीच जमीन जायदाद का बंटबारा, धुर कट्ठा जमीन के लिये पंचायती, गाली गलोज से लेकर मारपीट तक !

यही तो संस्कृती हम देखते आयें हैं अपने बचपन से । Delhi Bombay में रहने वाले लोग कहने के लिये ही न गाँव समाज से ऊपर हो गएँ हैं परन्तु दिमाग का पिछड़ापन कौन दूर करे ।  High class society का दिखावा उस standard को maintain करना सब Delhi Bombay की ही तो बात हैं । गाँव समाज में आते ही हम सारी बदलाव को भूल जाते हैं । सालों के आदर्शवाद का हवा निकालने में हम कोई कसर नहीं छोरते ।

 

बूढ़े-माँ बाप की ढलती काया के साथ छठ उनके उम्र को पांच दस साल जरुर कम कर देती है । सुख चैन तो non residential Bihari से मिलना दुर की बात है, अगला कुछ महीना दुख अवसाद और मानसिक त्रासदी में कटता है । जिस घर, जमीन, जायदाद को खून से सींचा, समेटा उसी को उनके जीते जी में ही non residential Bihari छठ के अगले ही दिन उसे बाँट कर जोकं की तरह बूढ़े माँ-बाप के शरीर से खून चूस लेते हैं । फिर non residential Bihari चल देते हैं अपने राह और पीछे छूट जाती है माँ बाप की आह ! बड़ा मार्मिक दृश्य होता है यह सब ! दो-चार छठ और देखने थे उस बूढ़े माँ-बाप को लेकिन काश कोई समझ पाता । उस जर्जर होती काया के दिल की पुकार !


लेखक : अविनाश भारतद्वाज ( सामाजिक राजनितिक चिन्तक )

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