दया वाली भीख मत दीजिए ! भरोसा करना सीखिए

एक नन्हीं सी जान जो इतनी नाजुक होती है, जैसे ओस की बूंदे इतनी खूबसूरत जैसे सर्दी की धूप । ईश्वर की वह रचना जिससे इस सृष्टि का सृजन होता है, वह बेटी होती है, पत्नी होती है, बहन होती है, मां होती है, और दोस्त भी । फिर उस बेटी, बहन, मां और दोस्त के साथ गलत कौन और क्यों करता है ? हम हर दिन देख रहे हैं। हर क्षण एक स्त्री की गरिमा को धूमिल किया जा रहा है।

बड़ी लज्जा आती है कहते हुए कि जिस सभ्यता में हम नारी को देवी का दर्जा देते हैं, उसी सभ्यता के कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें बेटी समान बच्चियों के वस्त्र उतारते हुए भी लज्जा नहीं आती । रोजाना ऐसी घटनाएं हो रही है। मैं इस विषय पर कुछ बातें लिख रही हूँ । मेरे विचार से सच लिखना मां सरस्वती की पूजा करने के बराबर है, तो जो सच है वही लिखा जाना चाहिए ।

 

बड़ी विचित्र बात है कि हर रोज नारी सशक्तिकरण नारी शिक्षा पर पता नहीं ऐसी कितनी बातों पर चर्चा होती है। प्रण लिए जाते हैं। योजनाएं बनती हैं । सबसे शर्मनाक बात यह कि जिस वक्त यह सब हो रहा होता है, ठीक उसी समय कहीं ना कहीं एक लड़की की इज्जत तार-तार हो रही होती है। आखिर कहां समस्या है ? चूक कहां हो रही है ? बिहार की राजधानी पटना का ही उदाहरण लीजिए, कुछ दिनों पहले यहां एक बड़े इंजीनियरिंग संस्थान में एक लड़की की इज्जत लूटते बची कुछ दिन पहले खबर आई कि मेडिकल की तैयारी करने वाली लड़की कोचिंग नहीं जाती क्योंकि रास्ते में लफंगे उसे रोज परेशान करते हैं, सवाल तो उठेंगे ! जब राजधानी लड़कियों के लिए सेफ नहीं बिहार की और हिस्सों में क्या होता होगा ? कुछ जानकार कहेंगे, अरे हमारी सोच ही खराब हो गई है, अरे लड़कियां आजकल कपड़े ही चुस्त पहनती हैं, देखो अब बाल ऐसे झटक के चलेगी तो दिमाग खराब होगा ही वगैरा-वगैरा ।

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सच में ऐसा है क्या ? पता नहीं ! शायद नहीं ! क्योंकि यह सब तो दिन-रात कहीं भी हो रहा है, नकाब, साड़ी, सूट कुछ भी पहने सबके साथ हो रहा है । फिर ? क्या करें ? कैसे सही करें ? बार-बार नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं ? इससे आप सब के दिमाग में बिठा रहे हैं कि लड़कियां कमजोर हैं जो नारी अपने गर्भ में 9 महीने में एक नया जीवन बना सकती है, उसे सशक्तिकरण की जरूरत है ? क्यों हम बचपन से ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि वह कमजोर हैं ? वह बस में खड़ी नहीं रह सकती । दया की पात्र हैं । उन्हें लड़कों की मदद की जरूरत है । क्यों हम समाज के सशक्तिकरण की बात नहीं करते जिसमें पुरुष और स्त्री दोनों को साथ लेकर एक दूसरे को समझना सिखाया जाए ? क्यों
हम ऐसे पेश आते हैं जैसे पुरुष बहुत मजबूत है और स्त्रियां कमजोर है तो उन्हें सशक्त करने की जरूरत है ?

मेरा बस इतना ही कहना है। हमारी सुरक्षा करना बंद कीजिए। हम पर भरोसा करना सीखिए । हमें वह दया वाली भीख मत दीजिए । बचपन से ही लड़कों के सामने यह मत बताइए कि लड़कियां कमजोर है यही बात उनके मन में यह मानसिकता लाती है की स्त्रियां कमजोर हैं और उन्हें दबाया जा सकता है। बहुत सारी बातें हैं । मन में सवाल हैं ! पर अंत में बस कुछ पंक्तियां लिखने को मेरे पास….!

तुम हत्या करके जीवन दो ,
यह ढोंग यहीं अब बंद करो..! जैसी हूँ वैसी जीने दो ,
बस इतना अब उपकार करो…। नजरें थोड़ी नीचे रखो ,
हम शक्ति हैं कोई फूल नहीं…..!!!


लेखिका : शालिनी झा ( पटना विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में गोल्ड मेडलिस्ट )

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