प्रेरणात्मक कहानी – दो घड़ा
सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” की एक प्रेरणात्मक कथा “दो घड़ा.” एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का. दोनों नदी के किनारे रखे थे. इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव में
सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” की एक प्रेरणात्मक कथा “दो घड़ा.” एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का. दोनों नदी के किनारे रखे थे. इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव में
एक यूवक सीढियों से गिर कर घायल हो गया. उसके पिता तत्काल उसे लेकर अस्पताल गए. वहाँ आवश्यक जाँच के बाद पता चला की यूवक के शरीर में तिन जगह गंभीर फ्रेक्चर है.
प्राचीनकाल की बात है, मगध सम्राज्य में सोनपुर नाम के गाँव की जनता में आतंक छाया हुआ था. अँधेरा होते ही लोग घरों से बाहर निकलने की हिम्मत
किसी जंगल मे एक गर्भवती हिरणी थी, जिसका प्रसव होने को ही था । उसने एक तेज धार वाली नदी के किनारे घनी झाड़ियों और घास के पास एक जगह देखी जो उसे प्रसव हेतु सुरक्षित स्थान लगा ।
एक दिन, एक लोमड़ी और एक बंदर ने पहाड़ी पर एक बड़े-बड़े आड़ू को गिरे हुए देखा. एक बड़ा सा ताजा आड़ू ! यह कितना स्वादिस्ट होगा यह सोच कर लोमड़ी
एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला नौजवान चोर है । यह बात दूर – दूर तक फैल गई.
रोहित और मोहित बड़े शरारती बच्चे थे, दोनों 5th स्टैण्डर्ड के स्टूडेंट थे और एक साथ ही स्कूल आया-जाया करते थे. एक दिन जब स्कूल की छुट्टी
एक राजा का दरबार लगा हुआ था, क्योंकि सर्दी का दिन था. इसलिए राजा का दरवार खुले मे लगा हुआ था. पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थी.
एक कौआ था जो अपनी जिंदगी से बहुत खुश और संतुष्ट था. एक बार वह एक तालाब पर पानी पीने रुका, वहां पर उसने सफ़ेद रंग के पक्षी हंस को देखा, उसने