सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” की एक प्रेरणात्मक कथा “दो घड़ा.” एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का. दोनों नदी के किनारे रखे थे. इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव मेंदोनों घड़े बहते चले. बहुत समय मिट्टी के घड़े ने अपने को पीतल वाले से काफी फासले पर रखना चाहा.
पीतल वाले घड़े ने कहा, ”तुम डरो नहीं दोस्त, मैं तुम्हें धक्के न लगाऊँगा.”
मिट्टीवाले ने जवाब दिया, ”तुम जान-बूझकर मुझे धक्के न लगाओगे, सही है,, मगर बहाव की वजह से हम दोनों जरूर टकराएंगे. अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारे बचाने पर भी मैं तुम्हारे धक्कों से न बच सकूँगा और मेरे टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे. इसलिए अच्छा है कि हम दोनों अलग-अलग रहें.”
शिक्षा – जिससे तुम्हारा नुकसान हो रहा हो, उससे अलग ही रहना अच्छा है, चाहे वह उस समय के लिए तुम्हारा दोस्त भी क्यों न हो ।
– सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”