याद उनको मेरी भी आती तो होगी !
का करें सर, पैसा तो है नही ! चक्की बेच दें ?
भरत आज भरथा से भरत भाई हो गए हैं । आज आप इनके गांव जाओ और किसी को पूछो कि भरत जी का घर कहाँ है तो लोग आपको इनके घर तक पहुँचा देंगे, पर चलते-चलते जरूर पूछ देंगे कि कोनों कंपनी से आये हैं का ? बहुते कंपनी वाला सब उनके पास आते रहता है ।
बादल बारिश और बेपरवाह
आज सुबह से ही मौसम काफ़ी अच्छा था, घर से ऑफिस के लिए अभी निकला ही था कि बारिश शुरू हो गयी, सामने एक मकान था तो फटफटिया खड़ा कर छज्जे के नीचें शरण लिया, काफ़ी देर तक
गाँव से इतना इरिटेसन क्यों ?
जहाँ आज की युवा पीढ़ी गाँव को हेट करने लगी हैं वहीं कुछ युवा गाँव से जुड़ी बातें, यादें एवं सपनो को कलम से सजा कर पेश करते रहते हैं तो आईये पढ़ते है सागर झा के कलम से निकला यह आलेख “गाँव से इतना इरिटेसन क्यों ?”
आर्केस्ट्रा और ताक झांक
स्टेज सज ही रहा था, साउंड बॉक्स लाइट और म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट लगाया जा रहा था, स्टेज के आगे युवाओं की भीड़ जमने शुरू हो गए थे. कुछ लोग इधर उधर टहल रहे थे.
छठ के बाद का पंचायत
छठ के अगले ही दिन आप देखियेगा मिथिला के हर दलान पर फिर पंचायत बैठेगी । मुद्दा वही भाई-भाई के बीच जमीन जायदाद का बंटबारा, धुर कट्ठा जमीन के लिये पंचायती, गाली गलोज से लेकर मारपीट तक !
आंगनबाड़ी का लुट सही है
आंगनबाड़ी हर गाँव क़स्बा मोहल्ला की एक पहचान है. छोटे-छोटे बच्चो का समूह, खिचरी बनाती सहयोगिनी और नन्हे-मुन्ने के किलकारियों से गूंजता वह