आपका नज़रिया ही जय, पराजय निश्चित करती है
इस प्रसंग के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है । की विषम परिस्थितिओं में हमें किस प्रकार से सोचना चाहिए, हमारी नज़रिया कैसी होनी चाहिए, की हम उस परिस्थिति से मुक़ाबला कर सकें ।
इस प्रसंग के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है । की विषम परिस्थितिओं में हमें किस प्रकार से सोचना चाहिए, हमारी नज़रिया कैसी होनी चाहिए, की हम उस परिस्थिति से मुक़ाबला कर सकें ।
यह लेख एक बच्ची और उसके परिवार से संबंधित है, यह एक हक़ीकत घटना है, कोलकाता के साल्ट लेक क्षेत्र के एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल की, जिसमें
वर्तमान में विभिन्न संस्थानों में व्यक्तित्व-विकास से संबंधित शिक्षा का प्रसार हो रहा है. व्यक्तित्व-विकास के साथ ही हम एक सभ्य समाज की कल्पना कर सकते हैं. तो आईये जाने व्यक्तित्व-विकास के मुलभुत तत्व एवं तर्क.
बहूत से लोग ऐसे होते हैं, जो स्वंय अज्ञानी होते हुए भी अपने को सर्वज्ञ समझने का अहंकार पाले रहते हैं. इस अहंकार के कारण ही वो
जीवन में ऐसी बहूत सारी परिस्थितियां आती हैं, जब हम खुद को लेकर अनिश्चित हो जाते हैं. इस अनिश्चितता से निकलने के लिए इन बातों को ध्यान में रखिए.
इर्ष्या ‘जलन’ एवं इस प्रकार का व्यवहार slow poison का काम करता हैं, यदि आपका कोई शत्रु आपसे इर्ष्या कर रहा है, तो आप निश्चिंत हो जाएं. वह स्वयं अपने आप को मिटा रहा है.
मुस्कान में उपचार की शक्ति होती है. यह आपका और आपके साथी का उपचार कर सकती है. जब आप इस तरह निर्मल होकर मुस्कुराएंगे, तो आपके सामने बैठा व्यक्ति भी मुस्कुराएगा.
यूग पुरुष “स्वामी विवेकानंद” 1893 में विश्व धर्मसंसद में भाग लेने शिकागो ( अमेरिका ) गए थे ! अभी धर्मसंसद में कुछ ही दिन शेष थे |