मैथिल बुद्धिजीवीयों की विडम्बना

भूख, कुपोषण, दरिद्रता , पलायन  एवं बेरोजगारी से  त्रस्त मिथिला के लिए नए आशा का संचार करने वाली…!  मिथिला क्षेत्र की दुर्दशा को मुद्दा बनाकर मिथिला के जनमानस में पहचान बनाने वाली संगठन….

चुपचाप कम्बल ओढ़ के घी पीते रहिए

ऐसा कभी होता नहीं था. समय बदला जिम्मेवारी बदली और फिर यूँ लगा कि आसपास का पूरा संसार ही बदल गया. हर पल गुस्सा आना, मुहँ  से गाली निकलना, चिड़चिड़ापन जीवन का एक अंग बन गया. सुहाने सपने

मिथिला आंदोलन PART 1

मिथिला आंदोलन मुट्ठी भर लोगों का समूह बन कर रह गया है. अगर आप गिनती करें तो 100 लोग भी नहीं पुरेंगे लेकिन उन्होंने पूरे मिथिला के आंदोलन का भार अपने पीठ पर उठा रखा है. हम बात भी इन्हीं क्रांतिकारीयों की बात कर रहें हैं.

ग्लैमर और जमीनी कार्यकर्ता

आप थोड़े ना कुछ करते हैं हमारे लिये. वो दीदी जो आपके साथ आई थी, वह हम लोगों के लिए काम करती है. आप तो बस यूं ही इधर उधर घूमते रहते हैं. सुनकर सर चकरा गया था मेरा, तो पूछ बैठा था भाई किसकी बात कर रहे हो.

यह तुष्टीकरण नहीं तो क्या संतुष्टिकरण है

जब आप अपने बेटी को अच्छे स्कूल में नहीं पढाते ! बचपन से ही उसके दिमाग में यह देते हैं की पैसे कम हैं …!! तो तुम्हारा भाई ही अच्छा स्कूल में पढ़ सकता है. यह तुष्टीकरण नहीं..

कीर्ति, DDCA और मिथिलांचल का विकास

इस DDCA के लड़ाई में मिथिला का विकास कहीं किसी कोने में दुबक कर रह गया । अरे आपको लड़ना ही था तो मिथिला के बंद पड़े चीनी मील के लिए लड़ते,

हमारा धर्म मानवता है..

आप धर्म के नाम विरोध करतें हैं किसी का ! ठीक है हमें कोई दिक्कत नहीं । हमें दिक्कत उन से है जो पीछे बैठे चुपचाप तमाशा देखते हैं और कुछ बोलते नहीं । जी हाँ हम उन्हें कसुरवार मानते हैं जो इसके खिलाफ खड़े नहीं होते, इसका का विरोध नहीं करते, और इस असमानता के खिलाफ तर्क नहीं करते ।

हमें पता है, आपको न्याय नहीं मिलेगा

हमें पता है, साथी तुम्हें न्याय नहीं मिलेगा. लेकिन हम मजबूर जो ठहरे, हर जुल्म के टक्कर में खड़ा होने की एक आदत सी जो हो गई है. हम भी क्या करें !