मिथिला आंदोलन मुट्ठी भर लोगों का समूह बन कर रह गया है. अगर आप गिनती करें तो 100 लोग भी नहीं पुरेंगे लेकिन उन्होंने पूरे मिथिला के आंदोलन का भार अपने पीठ पर उठा रखा है. हम बात भी इन्हीं क्रांतिकारीयों की बात कर रहें हैं.
एक दूसरे को क्रांतिकारी का संबोधन करने वाले ये लोग सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक आपस में ही उलझे रहते हैं. सारी दुनिया की परेशानी से दूर इन क्रन्तिकारीयों की अपनी एक खास किस्म की परेशानी है, एक खास किस्म का जूनून है. इनके पास एक मुद्दा है मिथिला राज्य का !
लेकिन क्रांतिकारी तो कोई नजर नहीं आता. फिर भी ये लोग आपस में एक दूसरे का क्रांतिकारी संबोधन कर एक दूसरे को क्रांतिकारी का उपमा देते रहते हैं. लेकिन जब हम दुनिया की नज़रों से देखते हैं तो हमें इनमें से एक भी क्रांतिकारी नजर नहीं आता. यही हमारे मिथिला आंदोलन का हाल है. इन मुट्ठी भर लोगों ने इस आंदोलन को एक ऐसे डब्बे में पैक कर रख दिया है जो पुरे जोर से निकलने को छटपटा रहा है लेकिन निकल नहीं पा रहा है. एक दूसरे को जोकं के तरह पकड़े हुए मिथिला आंदोलनकारी अपने आन बान और शान को लगा देने की कसमें खाते रहते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को मिथिला का भूगोल तक नहीं पता है. उपरी बातचीत में ये आपको बता देंगे गंगा पार का बिहार.
तो फिर हम मिथिला आंदोलनकारी सिर्फ दरभंगा या मधुबनी के ही क्यों है ये नहीं समझ आता. एक दो लोग सिर्फ नाम के लिये पूर्णिया सहरसा के होंगे इसके अलावा और कोई नजर नहीं आता. तो फिर दिमाग में एक प्रश्न आता रहता है कि क्या यह आंदोलन हम मिथिलावासी के दिवालियापन को नहीं दर्शा रहा है. आज हमें यह बात सोचने को मजबूर होना पर रहा है ताकि इस आंदोलन को पॉकेट से निकाल कर पूरे मिथिला के भूभाग में ले जाया जा सके और यह दो जिलों का आंदोलन न बन कर पुरे मिथिला का जनआंदोलन बन सके.
अविनाश भरतद्वाज (सामजिक कार्यकर्ता ) 9852410622