नुति : तीसरी चिट्ठी

नुति की पहली और दूसरी चिट्ठी को लोगों ने खूब प्यार दिया । लेखक प्रवीण झा से लगातार तीसरी चिट्टी की डिमांड होने लगी तो लीजिए विचारबिन्दु पे प्रस्त्तुत है “नुति की तीसरी चिट्ठी” पढ़िये और अपनी प्रतिक्रिया आवश्य दीजिए ताकि “विचारबिन्दु” के इस डायरी  श्रृंखला को आगे बढ़ाया जा सके ।

नुति : पहली चिट्ठी

नुति को नहीं पता कि कहाँ से शुरुआत हो । …मगर हाँ, फ़िलहाल शायद उसे बस एक माध्यम चाहिए जिसे वो अपनी बात कह सके । उसके मन की वो सारी बातें जो समाज-परिवार के बनाये नियमों के अंदर फिट नहीं बैठते ।

कुछ अनकहे से अल्फ़ाज़

डियर क्रश  डेढ़ साल तक मैं तुम्हें क्लास में देखता रहा परन्तु नाम तक नहीं पूछ सका. ऐसा नहीं है कि मैं पुराने ख़यालातों का था जिसे लड़कियों से बात…

एक पत्र ! मिथिला के यूवाओं के नाम

जिंदाबाद साथियों ! नववर्ष कि मंगलमय शुभकामनाओं के साथ ! मिथिला स्टूडेंट यूनियन आप सबों के स्वर्णिम भविष्य की कामना करती है । साथियों हमारे विश्वविद्यालय में व्याप्त कुव्यस्था पर विशेष प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है । सब कुछ प्रत्यक्ष है ….प्रमाण क्या दूँ !

ख़ुशी – तेरे नाम एक खुला ख़त

ख़ुशी कैसी हो ? तेरे नाम से पहले कोई विशेषण अच्छा नहीं लगता मुझे | मुझे सिर्फ तुम ‘तुम जैसी’ ही अच्छी लगती हो | पिछले कुछ दिनों से जिस्म कि तकलीफें बढ़ गयी थी, लोग-बाग़ के साथ साथ आलमारी में लगा सीसा भी शिकायत करने लगा था |

चुपचाप कम्बल ओढ़ के घी पीते रहिए

ऐसा कभी होता नहीं था. समय बदला जिम्मेवारी बदली और फिर यूँ लगा कि आसपास का पूरा संसार ही बदल गया. हर पल गुस्सा आना, मुहँ  से गाली निकलना, चिड़चिड़ापन जीवन का एक अंग बन गया. सुहाने सपने

बालकनी के प्रेम कथा का निर्दयी अंत

दिसम्बर के धुप में यूँ ही बालकनी के दूसरी तरफ मुड़ बैठ गया था | बादलों के बीच सूरज की आँख मिचौली में बालकनी की ठंडी हवा मन को मोह रही थी | एकाएक नजरें उठी और दूर के बालकनी पर जाकर अटक गई | एक खूबसूरत जवान कन्या !

छठ का SOP

परेशान सा हो गई थी वो, सालों बाद छठ पर घर में सब कोई मिले थे. बातचीत करना, साथ में समय बिताना, भूले-बिसरे पल को याद करना किसे नहीं अच्छा लगता ! तो वो भी यही सब चाहती थी.