एक पत्र ! मिथिला के यूवाओं के नाम

जिंदाबाद साथियों ! नववर्ष कि मंगलमय शुभकामनाओं के साथ ! मिथिला स्टूडेंट यूनियन आप सबों के स्वर्णिम भविष्य की कामना करती है । साथियों हमारे विश्वविद्यालय में व्याप्त कुव्यस्था पर विशेष प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है । सब कुछ प्रत्यक्ष है ….प्रमाण क्या दूँ !

साथिओं अब वो समय आ गया है…! हमें संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद करना ही होगा । अपने स्वर्णिम भविष्य के लिए हमें जंग लड़नी ही होगी । मिथिला स्टूडेंट यूनियन आप सबों का आह्वन करती है की छात्र एवं क्षेत्र के विकास में MSU के मिशन मे अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर जन्मभूमि मिथिला के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करें !

छात्र से संबन्धित सभी समस्याओं एवं शिक्षा तथा शिक्षण संस्थानों के स्तर मे सुधार के लिए MSU जमीन पर आपके लिए संघर्ष कर रही है ! LNMU एवं उससे संबन्धित सभी कॉलेजों मे शिक्षा के सही पुनरुत्थान के लिए अब जरूरी हो गया है की हम सब छात्र अपने हक के लिए आवाज़ बुलंद करें ! यूनिवर्सिटी-प्रसाशन तथा सरकार कान मे तेल डाल कर सोयी हुई है एवं हम छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है ! कहीं नियमित रूप से क्लास का संचालन नहीं हो रहा है तो कहीं शिक्षकों का घोर अभाव है ! मूलभूत सुविधाओं जैसे लायब्ररी, प्रयोगशाला, वाईफाई, खेल-कूद, प्रतियोगिता इत्यादि की हालत तो जर्जर है ही, यहाँ तक की इनकी लापरवाही के चलते परीक्षा तथा रिजल्ट्स संचालन मे भी घोर अनियमितता है !

इंफ्रास्ट्रक्चर, रिसर्च, एवं कोर्स सुइटबिलिट-अपडेसन की बात तो जाने ही दीजिये ! कुल मिला के हमारे शिक्षा एवं भविष्य को इन्होंने गहरे अंधेरे कुएं मे धकेल दिया है ! छात्रों के मेधावी होने के बावजूद, 1972 मे ही स्थापित LNMU, 67 कॉलेज होने के बावजूद अपने अर्कमन्यता के कारण हर क्षेत्र मे फिसड्डी साबित हो रही है !  सभी जरूरी रीसोर्स के होने के बावजूद हमारे दुर्दशा के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वो है इनकी नींद एवं अकर्मण्यता !

साथियों अब क्रांति का बिगुल फूंकने का समय आ गया है ! इस से पहले की हमारा भविष्य सो जाए, जागिये और साथ दीजिये MSU के संघर्ष में ! ‘LNMU’ को बदलने के  ‘MSU’  के संकल्प में भागीदार बनिए ! नए साल को नविन नूतनता प्रदान कीजिये, क्रांति की नवीनता ही अब बदलाव ला सकती है ! आंदोलन की आग भरिए अपने भीतर और मजबूर कीजिये इन्हें की ये आहट सुन सकें आपके कलम और भविष्य की !

आलेख : आदित्य झा

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