गाँव से इतना इरिटेसन क्यों ?

जहाँ आज की युवा पीढ़ी गाँव को हेट करने लगी हैं वहीं कुछ युवा गाँव से जुड़ी बातें, यादें एवं सपनो को कलम से सजा कर पेश करते रहते हैं तो आईये पढ़ते है सागर झा के कलम से निकला यह आलेख “गाँव से इतना इरिटेसन क्यों ?”

“चलो न वही दोहराते हैं” मुखपोथी के माध्यम से लिख के कुछ दिन पहले ऐसे कई पुराने दिनों को खदेड़ रहा था लेकिन शायद सच्चाई पूरी विपरीत है । कोई नहीं है दोहराने को । जो भी नवयुवक हैं वो इरिटेट हो गयें है गाँव से । सब भागने की सोच रहें है और साथ ही ये भी बोल रहें है की “अब गाँव में कोई और कुछ नहीं रहा” ।

अब ये सब जितनी भी बातें हैं आम,मचान,पोखैर,गाछी-बिरछी अब इसे देखने वाला कोई नहीं । सब सुनसान पड़ा हुआ है । व्यपारी मचान गारेगा आपके गाछी में आप नहीं ! और आपको हिस्सा दिया जाएगा सीधे और शायद आपको टपने भी नहीं दिया जाय । कोई मचान है बाबा के सुनहरे यादों वाला नहीं न।

गाँव में शादी-उपनयन-मुरण का फेरी चल रहा है तो कुछ पुराने लोग नए लोग बन के आएँ है । वो भी परेशां है इस गर्मी से जो कभी धुप और temp. को जानते भी नहीं थे । बिजली की व्यवस्था गर्मी में कैसी होती है वो किसी से छुपी थोड़े है । सच्चाई यही है की गाँव वीरान है सुनसान है, यहां जो भी हैं वो एक मज़बूरी का आलम है बस !

विकास की राह देखते-देखते कहीं न कही गाँव का स्तर और भी नीचे गिर गया है । हाँ, सड़कें और मकान बना दिये गए हैं ! अपनी हैसियत दिखाने के लिए जो सुनसान पड़ा हुआ है । लोग मतलबी हो चलें है वो जान रहें है की कोइ अब किसी के साथ नहीं रहा ।

अभी मौसम आम का भी है और इस समय में गाँव के लिए प्यार उमड़ पड़ता है और गाँव को भूले हुए लोग मन बहलाने के पुराने दिन को याद कर रहें होते है और उसे दोहराने का एक नाटक करते हैं, यही सच है ! अब गाँव को याद करिये और दोहराने की सोचिए भी नहीं क्योंकि न आप दोहराने को आ सकतें और न ही किसी को ला सकते हैं ।

मैं ये नहीं कह रहा की गाँव बदल गया और शायद न ही कभी कहूँगा लेकिन शायद समाज और समाज की स्थिति दिन प्रतिदिन काफी तेज़ी से एक दूसरे से दूर होती जा रही है, बड़ी संख्या में लोग अपने घर-परिवार को छोड़ पलायन कर रहे हैं । वो सफ़ल हो रहे होंगे शायद पर मजबूरी में किया गया काम कभी-कभी शौक में बदल कर हमें आदत से मजबूर बना देता है न !

आइये न गाँव मिलते हैं बाबा के मचान पे ….


और भी गाँव से जुड़ी बातें यादें सपनो को कलम से सजा कर पेश करते रहेगें… पढ़ते रहिये विचारबिन्दु “विचारों का ओवरडोज” लेखक : सागर झा / E-mail : hysagar05@gmail.com

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