भारतीय जवानों का कश्मीरी दर्द

आज़ादी हमने जीने के लिए ली है, मरने के लिए नहीं ,हमारे जवानों को भी आजादी चाहिए इनबेवक़्त की मौत से, ये न बलिदान देते हैं और न ही शहीद होते हैं बल्कि इनका खून होता है ड्यूटी के नाम पर । आखिर इन राजनेताओं को zक्लास की सुरक्षा क्यों… ताकि एसी हाल में मासूम जनता और जवानों के मौत का रोडमेप तैयार कर सकें ? जहाँ भारत 104 सेटेलाईट एक साथ लांच कर रहा है तो क्या ये इतने हाईटेक नहीं कि चौबीसो घंटे बार्डर और देश के अंदरूनी एरिया की मोनिटरिंग करवा पाएं ? न जाने क्यों सुरक्षा के नाम पर सरकार खिलवाड़ करते चली आ रही है…

न ये सेवाओं को बहाल कर पा रही है न ही जो इनमें हैं उनकी सेवाओं में वृद्धि कर पा रही है… और तो और सेना देश में एक तरह से देखा जाए तो गुलाम से कम नहीं क्योंकि हाल में एक जवान को दिए जाने वाले खानों पर सवाल उठाने के लिए बर्खास्त कर दिया गया है. ऐसे में कौन सवाल करेगा ? फिर तो पड़ोसी मुल्क़ ही ठीक है जो अपने यहाँ आतंकियों को बनाता है और उसे शहीद का दर्ज़ा देता है मरने के बाद. दूसरी तरफ हम हाथ पर हाथ धरे अपने जवानों को अपने ही लोगों से पत्थर खिलवाते हैं।

आखिर हमारा ज़मीर कहाँ हैं, शायद हम नशे में रहते हैं या वोट के वक़्त हमारे अंदर नशा ठूंस दिया जाता है ताकि हमारी ऊंगलियां केवल उन्हीं पर पड़े जिसने ज्यादा नशा पिलाया। बस करो यार, बार्डर से क्या निपटोगे यहाँ तो हमारे देश में ही जवानों का मतलब नहीं तो बांकि का क्या । कहीं न कहीं हमारा तंत्र फेल है क्योंकि दुश्मन हम खुद पैदा कर रहे।

एक जवान की मौत को राजनीतिक नज़र लग चुकी है,उनकी शहादत बार बार एक प्रश्नचिह्न बनता जा रहा है आख़िर किस बात पर जान ली जा रही है । क्या जवान सही मायने में देश की आबरू को बचाने के लिए मर रहे, तो नहीं,हर जवान बस जवान कहलाने की कीमत अदा कर रहे। ये जवान उन्हीं लोगों की सड़ाँध फाइलों की कीमत अदा कर रहे जो एक मुल्क़ के लाल बत्ती वाले से दूसरे देश लाल बत्ती वाले के बीच औपचारिक अदला बदली चलती आ रही ।

कहते हुए अजीब नहीं लग रहा कि एक शहादत की मौत न जाने कितने बार होती है, न जाने कितने पोस्टमार्टम में उनके शरीर को क्षत विक्षत हम करते जा रहे और न जाने कितने बार उस शहीदी का हम बलात्कार कर रहे जब उसपर तुरंत कार्यवाही की मांग कर रहे ।।

लेखिका : नम्रता

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