हमारे समाज मे सभ्य लोगों का एक ऐसा भी समूह होता है जो बरसाती बेंग की तरह केवल दूर्गा पूजा, काली पूजा और सरस्वती पूजा के अवसर पर ही दृष्टिगोचर होते हैं । इन भक्तों का पहला काम होता है हफ्ता वसूलने के स्टाइल में चंदा वसूलना ।
आप किसी छुट्टी के दिन अपने गद्देदार सोफा पर बैठकर कॉफी और फ्राइड काजू को कुतरते हुए TV पर भारत और अफ्रीका के मैच देखने में तल्लीन होंगे और अचानक दरवाजे पर जोर से दस्कत होगी । आप धड़कते दिल लिए कांपते हाथों से दरवाजा खोलेंगे । सामने नवयुवक मोर्चा के कुछ मुस्टंडे सरस्वती पूजा के लिए 5000 रूपये का रसीद लिए प्रकट मिलेंगे । आप महंगाई और मिडिल क्लास की कितनी भी दुहाई दें, उनलोगों पर कोई असर नहीं होगा । उलटे कोई भक्त कॉलर उठाए हुए आप ही गिरेबान पकड़कर बोलेगा, यदि इस कॉलोनी में जिंदा रहना है तो चंदा दे दीजिएगा वरना…। आप कातर निगाहों से बस देखते रह जाएंगे ।
इस तरह से स्कूल,कॉलेज,कोचिंग के संग चप्पा-चप्पा भक्तिमय होने लगता है । जोर-शोर से भक्तों की निगरानी में इस महा पूजा की तैयारी शुरू होती है । पूजा के आयोजक समिति के सदस्यों में ज्यादातर मैट्रिक फेल होते हैं । पंडाल सजाया जाता है,अच्छी मूर्ति का बंदोबस्त होता है और प्रसाद इत्यादि की तैयारी भी पूर्ण हो जाती है । कोई आधुनिक पंडित जी कॉन्ट्रैक्ट पर मंगाए जाते हैं ।
वैसे,पूजा की तैयारी में भक्तों की प्राथमिकता DJ की होती है । किसकी मजाल है कि इन दिनों सो सके । पूरे इलाके को संगीत से पूर्ण करने के लिए सभी जगह लाउडस्पीकर लगा दिया जाता है । सारी तैयारियों के बाद निश्चित दिन पर मां सरस्वती की पूजा शुरू होती है । प्रसाद के लिए छोटे मोटे दंगे और हिंसात्मक घटनाएं होती रहती है, परंतु उनका दमन भक्तों द्वारा बड़ी कुशलता पूर्वक किया जाता है ।
जहां तक संगीत की बात है तो “या कुंदेंदु तुषार हार धवला” और “हे हंस वाहिनी ज्ञान दायिनी” से इसकी शुरुआत होती है । जल्द ही आधुनिक उत्तेजक भोजपुरी गीतों का भक्तिमय प्रस्तुति शुरू हो जाता है । “आयल बारू बंगाल से गोरी बचके, आ गजबे कमर लचके” जैसे सुपरहिट भोजपुरी गीतों पर बालक और बालाएं भक्ति-रस में गोते लगाते हुए थिरकते रहते हैं । कुछ लोग इन भक्तों को देखकर आंखें भी सेकते हैं ।जिसके लाउडस्पीकर का आवाज सर्वाधिक होता है, वो बेताज बादशाह माना जाता है । टेस्ट को बदलने के लिए कभी-कभी “रात दिया बुता के पिया क्या-क्या किया” जैसे हिन्दी गीत भी भक्तों में काफी लोकप्रिय होता है ।
एक ओर जहां पूरा देश असांप्रदायिकता और असहिष्णुता का दंश झेल रहा है, वहीं दूसरी ओर इसके उलट DJ की धुनों पर एक अलग ही दृश्य उभरता है । सलमा की गली से गुजरते हुए एक अनजान टोली के काफिले में सभी तबके के लोग मिलकर बड़ी ही शिद्दत से धमगिज्जर प्रस्तुति देते हैं । यहाँ सांप्रदायिकता और सहिष्णुता का बढना एवं संस्कारों का घटना पूरी तरह से व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
अंतोगत्वा मूर्ति-विसर्जन का समय आ जाता है । भक्त लोग गंगाजल की तरह प्रसाद रूपी शराब का पान करते हैं । भयंकर जुलूस,तांडव का प्रदर्शन और नारेबाजी के बीच भगवती का विसर्जन होता है । इस सबके बीच पूजा का मुख्य आकर्षण थिरकती बालाएं ही होती है ।
खैर,रात में पूजा की अपार सफलता का जश्न मनाया जाता है, जहाँ पुण: जमकर मदिरा पान,डीजे पर अश्लील डांस होता है । धीरे- धीरे भक्त पुन: मनुष्य होने लगते हैं ।