वो ऊँगलियों का नहीं रूह का जादू होगा !

भारतीय शास्त्रीय संगीत के पुरोधा और देश के महानतम सरोद-वादक उस्ताद अली अकबर खां को सरोद को विश्वव्यापी मान्यता और लोकप्रियता दिलाने का श्रेय जाता है। वे प्रसिद्द मैहर घराने के संस्थापक उस्ताद अल्लाउदीन खां के पुत्र, संगीतज्ञ अन्नपूर्णा देवी के भाई और विश्वप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रविशंकर के साले थे।

Ustad Ali Akbar Khan

पांचवे दशक में देश भर में संगीत-मंचों पर अपनी कला का परचम लहराने के बाद 1955 में वे विश्व के महानतम आर्केस्ट्रा संचालक येहुदी मेनुहिन के आमन्त्रण पर अमेरिका गए और स्थायी रूप से कैलिफोर्निया में बस गए। अमेरिका में पंडित रविशंकर के साथ सितार और सरोद की युगलबंदी विदेश में भारतीय संगीत की लोकप्रियता का शिखर काल था। भारतीय शास्त्रीय संगीत, विशेषकर सितार और सरोद के प्रति लोगों की दीवानगी बढ़ते देख उन्होंने 1957 में कैलिफ़ोर्निया में ‘अली अकबर कॉलेज ऑफ म्यूजिक’ की स्थापना की। उस्ताद जी की लोकप्रियता ऐसी थी कि बहुत सारे हॉलीवुड, हिंदी और बंगला फिल्मों में संगीत देने का उन्हें आमन्त्रण मिला, लेकिन उन्होंने गिनीचुनी फिल्मों में ही संगीत देना स्वीकार किया। जिन फिल्मों का उन्होंने संगीत निर्देशन किया, वे थीं – सत्यजित रे की ‘देवी’, चेतन आनंद की ‘आंधियां’, तपन सिन्हा की ‘क्षुधित पाषाण’ ऋत्विक घटक की ‘अजात्रिक’ तथा हॉलीवुड की फ़िल्में ‘लिटल बुद्धा’, ‘द गॉडेस’ और ‘द हाउसहोल्डर’। फिल्म संगीतकार शंकर जयकिशन ने फिल्म ‘सीमा’ के एक गीत ‘सुनो छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी’ में उनके सरोद का बेहद खूबसूरत इस्तेमाल किया था।

भारतीय संगीत की महान विभूति उस्ताद अली अकबर खां की पुण्यतिथि (18 जून) पर खिराज-ए-अक़ीदत !


लेखक ; पूर्व आई० पी० एस० पदाधिकारी, कवि : ध्रुव गुप्त

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