हिन्दू धर्म के 24 संस्कारों में प्रमुख यज्ञोपवीत संस्कार का संछिप्त विवरण आईये पढ़ें…. क्या है यज्ञोपवीत संस्कार ?
उपनयन शब्द का मतलब होता है ब्रह्म और ज्ञान के नजदीक या सन्निकट ले जाना । हिन्दू धर्म के 24 प्रमुख संस्कारों में प्रमुख इस संस्कार को यज्ञोपवीत भी कहते हैं जिसमे बाल कटवा, जनेऊ धारण करवा और मंत्र दिलवा के शिक्षा-दीक्षा प्रारम्भ करने की प्रथा थी प्राचीन काल मे ।
उद्योग – मरबठट्ठी से शुरू होकर मैंटमंगल, छगराधुर, कुमरम, केशकटी, रातिम जैसे कई विधों से ये पूर्ण होता है । इसके पश्चात बटुक ब्राह्मण हो जाते हैं और जनेऊ और गायत्री के उत्तराधिकारी हो जाते हैं ! बांस कटवाना, मरबा बनाना, मिट्टी लेपना, भीक्षा मांगना, बाल कटवाना, जैसे विध इसलिए करवाए जाते हैं क्योंकि उपनयन प्राचीन काल मे बटुकों को गुरुकुल में जाने से पहले करवाया जाता था । ये सब काम उनको गुरुकुल में खुद ही करना होता था इसलिए इन सब विधों के द्वारा ये सब तैयारी करवाई जाती थी ।
“यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।“
प्राचीन काल मे सब कार्य संस्कारों से ही शुरू होता था, गौतम स्मृति के अनुसार कुल 40 प्रकार के संस्कार होते थे । पर धीरे-धीरे व्यस्तता के कारण सब विलुप्त होते गए । अब व्यास स्मृति में वर्णीत कुल 16 संस्कार ही पूर्ण किये जाते हैं । जिनमें “गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि“ प्रमुख हैं ।
इन सब संस्कारों में उपनयन संस्कार ब्राह्मणों के लिए सबसे प्रमुख हैं और इसे दक्षिण के ब्राह्मणों सहित सभी पंचगौड़ प्रमुखता देते हैं !
लेखक : आदित्य झा