सुविख्यात वैज्ञानिक Thomas Edison का जन्म 11 फ़रवरी 1847, अवसान 18 अक्टूबर 1931 , 84 वर्ष की अवस्था में हुआ, थांमस अल्वा एडीसन अत्यधिक परिश्रमी और धेर्यशाली थे । वे एक लक्ष्य रखकर जिस प्रयोग को आरंभ करते, उसे अंतिम
स्थिति तक ल जाते । बीच में मिलने वाली असफलताएँ या आने वाली बाधाएं उन्हें अपने लक्ष्य से कभी डिगा नहीं पाती । न वे कभी निराश होते और न कभी बीच में अपना कोई प्रोयोग अधुरा छोड़ते । एक बार काफी मुश्किलों का सामना करने के बाद भी एडीसन ने धैर्य नहीं छोड़ा ।
अंततः वे जिस यंत्र को बनाना चाहते थे, उसे बनाने में उन्होंने सफ़लता प्राप्त कर ही ली । जब उनकी इस उपलब्धि के विषय में अखबारों व पत्रिकाओं में खबर प्रकाशित हुई तो उसके पेटेंट को ले कर अदालत में केस दर्ज हो गया । इस केस में एक अन्य वैज्ञानिक टिंडल गवाही देने आए । उन्होंने अपना बयाँ देते हुए कहा –
‘मैंने भी इस यंत्र को बनाने के लिए मिस्टर एडीसन की प्रक्रिया अपनाई थी और अंतिम स्थिति का मुझे स्पष्ट रूप से ज्ञान था, लेकिन वहां तक पहुँचने में मैं संकोच कर गया ।’
वकील ने प्रश्न किया, ‘जब अंतिम स्थिति आपको इतनी स्पष्ट थी, तो आप संकोच क्यों कर गए ?’ टिंडल ने उत्तर दिया, ‘क्यों की मैं थामस एडीसन नहीं हूँ ।’
अदालत एडीसन के सम्मान में तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी । वस्तुतः किसी बड़े लक्ष्य को हासिल करना हो तो कठोर परिश्रम के साथ धेर्य की भी आवश्यकता होती है ।
इन गुणों के अलवा एडीसन मानव गरिमा और सम्मान के भी बड़े हिमायती थे ।
उनके बड़े से माकन में काम करने वालों की बड़ी चहल-पहल हुआ करती थी और यह कोई अचरज की बात नहीं थी की एडीसन का परिवार और उनका स्टाफ प्राय: एक ही हॉल में सोया करते थे । एडीसन के स्टाफ में अलग-अलग क्षेत्रों से आये लोग थे । इसका उन्हें बड़ा अभिमान था । इसलिए अपने स्टाफ को वे लीग ऑफ़ नेशन्स कहा करते थे ।