बुढ़िया, हँसुआ, घास और विकास

दोपहर बीत चुकी है । फागुन की ठंडी हवाओं ने कब करवट ली और चैत्र मास के लूँ के थपेड़ों ने मन को विचलित करना शुरू कर दिया यह पता ही नहीं चला । दलान से… कुर्सी निकाल पैरों को ऊंचे पायदान पर डाल लिखने ही बैठा था कि पीछे से खुर-खुर की आवाज ने … Continue reading बुढ़िया, हँसुआ, घास और विकास