राहुल सांकृत्यायन और नेपाल

नेपाल के प्रसिद्ध साहित्यकार धर्मरत्न यमि के साथ राहुल सांकृत्यायन की यह तस्वीर जनवरी 1953 में राहुल जी की नेपाल-यात्रा के दौरान ली गई थी। राहुल जी की यह यात्रा इस अर्थ में भी विशिष्ट थी कि इसी दौरान राहुल जी नेपाल के महाकवि लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा के साथ-साथ अन्य प्रमुख नेपाली साहित्यकारों से भी मिले थे। देवकोटा का फक्कड़ व्यक्तित्व राहुल जी को निराला की याद दिलाता रहा। राहुल जी ने ‘मेरी जीवन-यात्रा’ में लिखा भी है कि ‘देवकोटा को देखकर मुझे बार-बार निरालाजी याद आते थे – वैसा ही अकृत्रिम सौहार्द और वैसी ही काव्य-प्रतिभा। ख़ुद भी अपनी कृतियों की सुरक्षा की परवाह नहीं करते। लिखते-फाड़ते-भूलते उन्हें देर नहीं लगती।’

इसी यात्रा में राहुल जी की मुलाक़ात नेपाल के प्रमुख साहित्यकारों जैसे बालकृष्ण सम, बालचन्द्र शर्मा, जनकलाल शर्मा, केदारनाथ व्यथित, महानन्द सापकोटा, चित्रधर उपासक आदि से हुई। ‘नेपाली शिक्षा परिषद’ की सभा में दिए एक भाषण में राहुल जी ने नेपाल की बहुभाषिकता पर ज़ोर दिया था। नेपाली के साथ-साथ उन्होंने नेवार और गुरुंग जैसी भाषाओं के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए कहा था : ‘यदि नेपाल के लोगों को जल्दी से जल्दी साक्षर करना है, तो प्रारम्भिक शिक्षा का माध्यम उनकी भाषाओं को रखना होगा।’ राहुल जी ने नेपाली साहित्य सम्मेलन में भी भाग लिया था। इस यात्रा में कमला जी भी बराबर राहुल सांकृत्यायन के साथ रहीं।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1953 में ही राहुल जी ने ‘नेपाल’ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी थी। नेपाल से भारत लौटने के बाद राहुल जी ने मई-जुलाई 1953 में सस्ता साहित्य मण्डल की मासिक पत्रिका ‘जीवन-साहित्य’ में तीन लेख धर्मरत्न यमि के व्यक्तित्व, उनकी राजनीतिक गतिविधियों और कृतित्व के बारे में लिखे। संयोग नहीं कि धर्मरत्न यमि और राहुल के जीवन में कई समानताएँ दिखाई देती हैं। प्रतिबद्ध साहित्यकार होने के साथ ही दोनों ने अपने राजनीतिक सरोकारों के लिए राजनीतिक संघर्षों में भाग लेने और जेलयात्राएँ करने से कभी गुरेज नहीं किया।

राहुल जी की तरह ही धर्मरत्न यमि भी बौद्ध थे, लेकिन मार्क्सवाद और साम्यवाद से गहरे प्रभावित थे। राहुल और धर्मरत्न दोनों ने ही जेल में रहते हुए कालजयी ग्रंथ लिखे। धर्मरत्न यमि की अनेक कालजयी पुस्तकें यथा ‘संदेशया लिसल’ (नेवार भाषा का प्रसिद्ध खंड-काव्य), ‘अर्हत नन्द’ और भगवान बुद्ध की जीवनी ‘जगत ज्योति’ जेल में रहते हुए ही लिखी गईं। राणाशाही के विरुद्ध संघर्ष की योजना तैयार करते हुए धर्मरत्न यमि 1939 में इलाहाबाद में जवाहरलाल नेहरू और पटना में रामवृक्ष बेनीपुरी से भी मिले थे, जो उस समय समाजवादी पत्रिका ‘जनता’ के संपादक थे।

बौद्ध धर्म व दर्शन में गहरे अनुराग और अपनी घुमक्कड़ वृत्ति के चलते राहुल जी ने नेपाल की अनेक यात्राएँ की थीं। देखें तो ये नेपाल यात्राएँ उनकी तिब्बत-यात्रा के एक अनिवार्य पड़ाव की तरह जान पड़ती हैं। राहुल जी की पहली नेपाल-यात्रा वर्ष 1923 में हुई। इस यात्रा के दौरान राहुल जी थापाथल्ली मठ में रुके थे। जहाँ से उन्होंने पशुपतिनाथ, गुह्येश्वरी, महाबोधा, शिखरनारायण जैसे ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया। वहीं वे बौद्ध विद्वान वज्रदत्त वैद्य और रत्नबहादुर पंडित से भी मिले।

राहुल जी भारत-नेपाल-तिब्बत में व्यापार करने वाले नेवार व्यापारी धर्ममान साहू और उनके बेटे त्रिरत्नमान साहू के संपर्क में आए। अपनी तिब्बत यात्राओं में राहुल जी को धर्ममान साहू से समय-समय पर जो सहायता मिली थी, उसके लिए वे हमेशा उनके कृतज्ञ रहे। इस पहली नेपाल यात्रा में उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण मुलाक़ात हुई राजगुरु पंडित हेमराज शर्मा से। पं. हेमराज शर्मा से राहुल जी की यह भेंट आगे चलकर तीन दशक लंबी सहयोग व मैत्री की बौद्धिक यात्रा में परिणत हुई। ‘प्रमाणवार्तिक’ समेत अनेक दुर्लभ ग्रन्थों की पांडुलिपियाँ भी राहुल जी को हेमराज शर्मा से ही मिली थीं और बौद्ध दर्शन के अनुशीलन हेतु ज़रूरी मार्गदर्शन भी।

वर्ष 1929 में हुई अपनी सवा बरस की तिब्बत यात्रा से पूर्व राहुल जी ने कुछ महीने नेपाल में किंदोल विहार में अज्ञातवास में भी गुजारे थे। उसी यात्रा में वे डुक्पालामा से भी मिले थे। कहना न होगा कि राहुल जी की जीवन-यात्रा भारत-नेपाल मैत्री का सुनहरा अध्याय है।


आलेख साभार

शुभनीत कौशिक जी के फेसबुक वाल से”

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