सोच ही हमारी दिशा और दशा तय करती है

गर्मी की छुट्टी में मैं अपने फुआ के यहाँ गया हुआ था. उस समय दुसरे शहर से मेरी फुआ की हमउम्र एक रिलेटिव आई थी. एक-दो दिन तो सब ठीक रहा, तीसरे दिन मौका देख कर उन्होंने मेरे सामने ही, फुआ जी के कान भरने  शुरू कर दिए, ‘तुम खुद को बहूत समझदार समझती हो, लेकिन परिवार के मामले में एकदम सीधी हो.’

‘क्यों, क्या हुआ ?’ फुआ जी ने पुछा !

‘तुम्हारी बहू को यहाँ आये अभी साल भर भी नहीं हुआ है और वह तुम्हारी हर आदत पर निगाह रखती है. तुम किस वक्त क्या खाती हो, क्या पहनती हो, कैसे रहती हो वैगेरह, कायदे से तो तुम्हे उस पर नजर रखनी चाहिए, उल्टा वह ऐसा कर रही है. सास तुम हो की वह ! मेरी तरह कोई होती, तो दो दिन में सब ठीक कर देती. अभी से लगाम कस कर रखना वरना बुढ़ापा बिगड़ जयेगा.’ उन्होंने फुआ जी को समझाने की कोशिश की.

‘सरिता, मैंने तो ऐसा कभी महसूस नहीं किया. यदि तुम्हे लगता है की मेरी बहू मुझ पर नजर रखती है, तो यह भी अच्छी बात है. वही तो मेरे बुढ़ापे का सहारा है. वह मेरे हर आदत से परिचित होगी, तो समय आने पर उसे काम करने में आसानी होगी. न उसे मुझसे कुछ पूछना पड़ेगा और न मुझे कुछ बताने की जरूरत होगी. मेरे सभी काम आसानी से बिना तनाव के पुरे हो जायेंगे.

फुआ जी का स्पष्टीकरण सुन उसकी बोलती बंद हो गई. उस दिन मैंने समझा कि सकारात्मक सोच किस तरह हमें सही दिशा देती है.

सीख : इस प्रकार आपने इस प्रसंग में  पढ़ा की किस प्रकार नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति हमारे परिवार में दखलंदाजी करने का प्रयास करते हैं, हमारे परिवार बिखरने से बचे इसके लिए हमें ऐसे संक्रींन  मस्तिष्क  लोगों के विचार से बच के रहना चाहिए और सकारात्मक एवं उचित उत्तर से इनकी बोलती बंद करनी चाहिए.

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