पटना के बालकनी से

दिल्ली एक प्यारा सा छत था, तो पटना में बालकनी । बस यही अंतर आया है मेरे जीवन में 1000 किलोमीटर की दूरियाँ बढने के बाबजूद । 

किसी को कॉल लगता रहा, रिंग होता रहा लेकिन जब कॉल नहीं उठाया गया तो अपने बालकनी में बैठा सोच में मगन हो गया । दूर मस्जिद के मीनार पर हरा टिमटिमाता हुआ बल्ब ने ध्यान को भंग किया, तो कभी बगल के झोपड़पट्टी में बजने वाले हिंदी गाने ने, कभी सामने बैठी गरीब औरत ने जो हमेशा जीने के लिए संघर्ष करते दिखती है, तो कभी उस मोटे सर मुड़े साल भर के बच्चे ने जो बड़े प्यार से किसी के मोबइल में ताक झांक कर रहा है ।

avinash bharadwaj

नजरें यूँ ही उठती गई, कहानी का स्वरूप बदलता गया और फिर एक मधुर गाना कानो से टकराया “ये तेरे हाथ की अंगूठी, प्रेम की निशानी बनेगी” दिल में बेकरारी जगी और ऐहसासों ने फिर से फोन को हाथों में थमा दिया, घंटी बजती रही और उसने फोन नहीं उठाया और वही निराशा, तो उँगलियों के बीच कलम नाचने लगी ।

ठंडी हवा के साथ आती हुई प्रेम भरी मधुर गीत के बोल से दिल में एहशाश हिलकोरे लेता रहा । लेड के लाइट के रोशनी में वार्ड पार्षद अर्चना राय का नाम चमक के साथ मुहं चिढ़ाने लगा । फिर दिमाग में राजनीती आते ही कहानी का लय टूट गया । और एक टूटे दिल की भांति हमने विदा ले ली । लेकिन बालकनी से हम लिखते रहेगें, यूँ ही कभी कभी ।


लेखक : अविनाश भरतद्वाज