एक किसान की जिंदगी- खलिहान से लाइव

Kishanएक किसान दम्पति सुबह ४ बजे उठते हैं, नित्य-क्रिया से निवृत झाड़ू उठाकर मवेशी को बाहर निकालकर बाँधने के लिए सफाई शुरू कर देते हैं । गोबर उठाकर फेंकते हैं, मवेशी के लिए चारा तैयार करते हैं, मच्छरों को भगाने के लिए आग जलाकर धुआं करते हैं, दूध दुहते हैं फिर मवेशी को खूटे से बाँध चारा खाने छोड़ दोनों पति-पत्नी अपने काम के लिए चल पड़ते हैं । मर्द खुरपी-हँसियाँ-कुदाल सब की साफ़-सफाई करके सब एक जगह इकट्ठा कर खेत की ओर निकल पड़ता है । औरत चूल्हा-चौका में लग जाती है । जल्दी-जल्दी रोटी बनाकर मूली-मिर्च, नमक-तेल के साथ पति के खेत पर जाने से पहले थाली सजाकर परोस देती है । खाना खाकर पुरुष किसान खेत पर चले जाते हैं और औरत घर के बाकि काम-काज, बच्चों-बूढों की सेवा-शुश्रूषा में लग जाती है और इन सब में वो अपना खाना-पीना अक्सर भूल जाती है

दोपहर २-३ बजे किसान घर को लौटता है, सबलोग साथ बैठकर खाना खाते हैं । पुरुष कुछ देर लेट जाते हैं या थकान मिटानें किसी दालान पर बैठकर ताश खेलनें में लग जाते हैं । पर महिला चौका-बर्तन को धोने-मांझने में लग जाती है । मवेशी को पानी पिलाती है, वो कुछ भी नहीं भूलती है । फिर ३-४ बजते बजते दोनों दम्पति मवेशी सेवा में लग जातें हैं । फिर से वही काम मवेशी का चारा तैयार करना, मच्छरों को भगाने के लिए धुआं, मवेशी के सोने के लिए घर में पुआल डालना, दूध दुहना….

Kishan
“हल जोतते हुए कृषक”

५-६ बजे पुरुष किसान हाट-बाज़ार की तरफ निकल पड़ते हैं । सब्जी उत्पादक हैं तो सब्जी बेचने या घर की जरुरत का सामान खरीदने में लग जाते हैं । शाम के ७ बजते बजते सब लोग खाना खाकर सो जातें है और फिर अगले दिन सुबह फिर से वही रूटीन में लग जाते हैं…कभी खेत जुताई, कभी बुवाई, कभी सिंचाई, कभी निराई, कभी कटाई का निरंतर चक्र चलता रहता है ।

ना कभी थकते हैं, ना कभी अपने काम से बोर होते हैं, ना कभी अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटते हैं, हर काम समय पर पूरा हो जाता है ।
इतनी मेहनत क्या हम-आप करते हैं ? सम्मान का हक़दार कौन है ? हम नौकरीपेशा लोग तो हर दिन अपनी नौकरी को गाली देते हैं, जिम्मेदारियों से बचने का बहाना ढूंढते रहते हैं ।

“एक न्योछावर करता प्राणों की,
रक्षक है हिन्द के अभिमानों की ।
एक लहू सींचकर खेतों में,
वर्षा करता अन्न दानों की ।
ये दो सपूत नहीं, मात्रभूमि की शान हैं ।
एक किसान, एक जवान हिंदुस्तान के दो सच्चे संतान हैं ”


लेखक : अविनाश कुमार

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