लघुकथा – विदुषी महिला

एक मुसाफ़िर ने सड़क के किनारे बैठी एक महिला से पूछा, आगे जो शहर आने वाला है, उस शहर के लोग कैसे हैं ? ‘तुम जहाँ से आ रहे हो, वहां के लोग कैसे थे ?’  –  महिला ने पूछा. मुसाफ़िर ने जबाब दिया – ‘बहूत बुरे लोग थे. स्वार्थी, भरोसेमंद भी नही थे.’महिला ने कहा – ‘बस इसी तरह के लोग तुम्हें इस शहर में भी मिलेंगे.’

पहले मुसाफ़िर को कुछ ही समय हुआ था की दूसरा मुसाफ़िर वहां आया और उसने भी महिला से वही सवाल किया. महिला ने उससे भी वही सवाल किया. महिला ने उससे भी वही पूछा की पिछले शहर के लोग कैसे थे ? दुसरे मुसाफ़िर ने जबाब दिया, ‘वे सब बहूत अच्छे लोग थे. ईमानदार, मेहनती और दूसरों की गलतियाँ नजरअंदाज करने वाले. मुझे उस शहर को छोड़ने का बहूत अफ़सोस हुआ.’ उस विदुषी महिला ने कहा, ‘बस इसी तरह के लोग तुम्हें इस शहर में मिलेंगे.’

इस कहानी से हमे यही सिख मिलती है की किसी चीज को देखने का हमारा जो नजरिया होता है, चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक हो हमें वो चीज वैसा ही प्रतीत होता है.

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