मैं रूम में अपने किसी काम में व्यस्त था, तभी किचन से अपनी माँ और बीवी की आवाज सुना । मेरी बीवी माँ को खड़ी खोटी सुना रही थी । शायद…
माँ ने दूध फ्रिज से बाहर रख दिया था जिससे दूध फट गयी थी । माँ बस यही कह रही थी की उसने गलती से दूध बाहर छोर दिया । और मेरी बीवी उन्हें डांटे लगा रही थी क्योंकि उसे मेरे लिए चाय बनाना था पर दूध फटी देख वो बौखला गयी थी । मैं ये सब सुन रहा था पर काम में व्यस्तता के कारण अपने काम में लग गया । ये कोई नयी बात नहिं थी सुलेखा की आदत सी हो गयी थी माँ को खड़ी-खोटी सुनाना । मैं भी सुलेखा की देखा देखि में कभी कभी माँ को डांट दिया करता था । और हमेशा उन दोनों के बिच मैं सुलेखा का ही पक्ष लेता और माँ को डांट देता था ।
आज जब मैं तीन दिन बाद घर आया तो माँ मेरे पास आ कर अपने आँचल से मेरे मुँह को पोछते हुए बोली बेटा खाना लगा दूँ ? दूर से आया है थक गया होगा ला अपना पैर जूता उतार देती हूँ । मैं चुप चाप माँ को देख रहा था और वो मेरे जूते को उतार रही थी । मैंने माँ से पूछा सुलेखा कहाँ है तो उसने कहा वो तो अभी अभी बाहर गयी है मुझे बतायी की तुम कुछ देर में आने वाले हो और कह कर चली गयी । सुलेखा अपने माँ को देखने गयी थी उसने मुझे पहले ही बताया था उसके माँ की तबियत ख़राब है । पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था की वो मेरे साथ भी तो जा सकती थी । मैं तीन दिन के बाद आया हूँ पर वो मुझसे मिलने को भी नहीं रुकी । यही सब मेरे दिमाग में चल रहा था तब तक माँ ने खाना लगा दिया था । माँ ने मुझे आवाज दिया बेटा मुँह हाथ धो लो खाना लगा दिया है । मैं खाना खा के बिस्तर पर लेट गया पर नीन्द नहीं आ रही थी । मन में बस एक ही बात चल रहा था की सुलेखा अपने माँ को देखने के जल्दी में मुझसे मिले बिना चली गयी । और मैं उसके चलते अपने माँ को हमेशा डांटता रहता हूँ । लेकिन माँ उस बात को लेकर कभी भी मुझसे या सुलेखा से कोई नाराजगी नहीं जतायी थी । वो बस सुनती और भूल जाती , लेकिन ये बात मेरे मन में घर कर गयी । सारी रात मैं बस माँ के बारे में सोचता रहा आखिर क्यों वो अपनी बेईज्जती बर्दाश्त करती है । आखिर क्या है वो चीज जिसके चलते माँ मुझसे इतना प्यार करती है । क्यों हमेशा मेरी चिंता करती है । क्यों वो सुलेखा की बातों का जवाब नहीं देती । क्यों…? क्यों….? और न जाने कितने ही क्यों…? मेरे मन को झकझोर रही थी ।
मैं सुबह माँ को सबसे पहले यही पूछा आखिर कौन सी बात है जिसके चलते तुम इतना सब सहती हो और उफ़्फ़ तक नहीं करती । मैं माँ की बातों को सुनकर दांग रह गया ! आज मुझे पता चल गया उस क्यों..! का कारण क्या है ।
माँ ने बहुत ही सहज भाव से कहा था पर उनकी वो बातें मुझे आज सच से रूबरू करवा गया । उन्होंने कहा बेटा अब मेरा जिंदगी तो कट गया बस तुम्हारी चिंता हमेशा सताती रहती है । मैं तो दो चार दिन की मेहमान हूँ । पर मेरे चलते तुम दोनों में अनबन ना हो यही भगवान् से दुआ करती हूँ । तुम दोनों ख़ुश रहो आबाद रहो इससे ज्यादा एक माँ के लिए क्या हो सकता । ये कह कर वो किचन चली गयीं । और जाते जाते कह गयी तू इतना सोच मत सर दर्द करेगा । मुझे मेरे सारे क्यों….! का जवाब मिल गया था, ये सब माँ की ममता ही तो है जो अपने दुःख को भुला कर अपने बेटे के सुख़ की दुआ करती है । ये माँ की ममता ही थी जो मुझ जैसे पापी को भी मिल जाती है । यही एक ईस्वरिय वरदान है जो हर किसी के नसीब में होता है । बस मेरी तरह कई ऐसे हैं जो उस ममता की कीमत नहीं जानते ।
लेखक : शुभंकर ठाकुर