गोपाल गणेश आगरकर एक महान समाज सुधारक, सम्पादक एवं शिक्षाविद् थे. आईये जाने इनके विचार और जीवनी. “वांछनीय होगा वो बोलुंगा और पूरा होगा वही करूंगा”
शुभ नाम : गोपाल गणेश आगरकर / Gopal Ganesh Agarkar
जन्म : 14 जूलाई 1856, अवसान : 17 जून 1895
जन्मस्थान : महाराष्ट्र के सातारा जिले के कराड तहसील के टेंभू ग्राम में
पिता : गणेशराव आगरकर , माता : सरस्वती आगरकर
शिक्षा : ( B.A – 1878 ) ( M.A – 880 )
पुस्तकें : विकार विलसित, डोंगरी के जेल के 101 दिन इत्यादि.
आदर्श वाक्य : “वांछनीय होगा वो बोलुंगा और पूरा होंगा वही करूंगा”
महाराष्ट्र के गोपाल गणेश आगरकर एक महान समाज सुधारक, सम्पादक, शिक्षाविद् एवं लोकमान्य बाल गंगधर तिलक के सहयोगी थे. इन्होंने अपने जीवन काल में शिक्षण संस्थान जैसे की New English school , The dacen education society और fergusan collage की स्थापना करने में तिलक, विष्णुशास्त्री चिपलूनकर, महादेव बल्लाल नामजोशी, व्ही.एस. आप्टे, व्ही.बी. केलकर, एम.एस. गोले और एन.के धराप जैसे लोगों को बहूत मदद किये.
1882 में कोल्हापुर के दीवान पर टिपण्णी करने की वजह से इनके ऊपर मानहानि का केश दर्ज हो गया जिसके वजह से इन्हें 101 दिन की जेल की हवा खानी परी. इसी दौरान इन्होंने जेल में शेक्सपियर के नाटक ‘हॅम्लेट’ का मराठी अनुवाद किया जिसका नाम था “विकार विलसित”. जेल से निकलने के बाद इन्होंने डोंगरी जेल के अपने अनुभव को एक पुस्तक का रूप दिया जिसका नाम है “डोंगरी के जेल के 101 दिन” इन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त रुढ़िवादिता जैसे बालविवाह, मुंडन, नस्लीय भेदभाव, अस्पृश्यता आदि का घोर विरोध किया.
इन्होंने केशरी और मराठा पत्रिका में सम्पादक के रूप में कार्य किया और 1888 में ‘सुधारक’ नाम का अपना स्वतंत्र साप्ताहिक पत्रिका शुरू किया जो अंग्रेजी और मराठी में छपती थी. जो बहूत ही प्रसिद्ध थी.
गोपाल गणेश आगरकर जी का एक लेख जो बहूत ही प्रसिद्ध हुआ
“समाज सुधार” की सही दिशा !
“समाज सुधार सही मायने में किन बातों में निहित है, इसे बहूत ही सोच समझ कर तय करना होगा. क्योंकि अक्सर होता यह है किसी विशिष्ट विचार-प्रवाह में बह जाने वाले या किसी मत प्रणाली के अधीन होकर उसका अनुसन्धान करने वाले मनुष्य को, वास्तविक अर्थ में “समाज सुधार” किस बात में है, यह भलीभांति समझ न पाने से, उसे हर पुराणी बात को निकाल फेंकने तथा किसी नई बात को अपनाने में कोई बहूत बड़ा समाज सुधार का काम करने का भ्रम हो जाता है.
ऐसे लोगो को सुधारक की बजाय ‘दुर्धारक’ अर्थात समाज का अहित करने वाला या समाज विघातक कहना ही ठीक है. उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म में बहूत सारी बुराईयाँ हैं, इसीलिए यहूद्दी, मुस्लिम, इसाई या ऐसे ही किसी धर्म को अपनाने वाले व्यक्ति को विचारशील कहना ठीक नहीं है.
जिस देश में हमारे सैकड़ो पूर्वज पैदा हुए, पले-बढ़े और जिन्दगी जी कर सिधार गए, जिस देश में हजारों पीढ़ियों के महतप्रयासों, कष्टों का फल हमें एक धाती के रूप में अनायास ही प्राप्त हुआ, ऐसे देश के धर्म, रीती-रिवाज व लोगों का पूरी तरह त्याग करने वाले मनुष्य को सुधारक का सम्मान शोभा नहीं देता. स्वदेश व स्वभूमि में, स्वजनों के साथ अपने स्त्व्शील आचरण पर अडिग रहकर, अपने देशवासियों के अज्ञान व अविचार को डरे बिना, उनसे कभी लड़ – झगड़ कर, कभी युक्तिवाद की चतुराई से, कभी लाड़ – प्यार – दुलार के हुन्नर से या कभी अपने में दमखम हो तो डांट – डपट अरे उनकी दकियानूसी बातों में सुधार करने में ही सच्ची देशभक्ति , सच्ची भाईचारा , सच्चा देशाभिमान उचित सूझ-बुझ और सत्यशील पुरुषार्थ है. इसके उलटे जो लोग विपरीत वर्ताव करते हैं. वह समाज सुधार का कोई काम तो नहीं करते, बल्कि एक प्रकार की बेरियाँ तोड़कर दुसरे प्रकार की बेड़ियाँ में जकड़ जाते हैं”
अपने जीवन में समाजिक कार्यो करने वालों के आदर्श स्वरूप महान समाज सेवी गोपाल गणेश आगरकर जी का 39 वर्ष के ही अवस्था में ही अवसान हो गया. अपने समाजिक जीवन के काल में उन्होंने महाराष्ट्र के लोगों में शिक्षा एवं मानवीय मूल्यों का प्रचार प्रसार किया और अपने जीवन के अंतिम कल में भी वो एक शिक्षक के भूमिका एवं फर्ग्युसन कॉलेज के प्राचार्य के पद पर प्रतिष्ठ थे.