मित्रों, दुनिया के महान वैज्ञानिक में से एक थे अल्बर्ट आइंस्टीन जिनका जन्म – 14 March 1879 और अवसान – 18 April 1955 हुआ मित्रों इस लेख में इनके जीवन के घटनाओं का जिक्र है, की इतने बड़े वैज्ञानिक होने के वावजूद इन्होंने अपनी सादगी को बनाये रखा | महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन ने जब जर्मनी छोड़ा तो सारी दुनिया के विश्वविद्यालयों से उन्हें निमंत्रण प्राप्त हुआ ।
आइन्स्टीन जैसे अत्यंत प्रतिभावान वैज्ञानिक को भला कौन अपने यहाँ बुलाना नहीं चाहेगा ? सभी को उनकी प्रतिभा और ज्ञान का लाभ जो उठाना था । आग्रह तो सभी संस्थानों से था, किन्तु आइन्स्टीन ने अमिरिका के प्रिंस्टन विश्वविद्यालय को चुना ।
चूकिं आइन्स्टीन बोद्धिक व शांत प्रकृति के थे, इसलिए उन्होंने प्रिंस्टन विश्वविद्यालय को स्वयं के लिए बेहतर माना । वे 1933 में प्रिंस्टन आये और अपने जन्दगी के शेष 22 वर्ष वहीं बिताए । वस्तुतः प्रिंस्टन विश्वविद्यालय का वातावरण सर्वथा शांत और बौधिक था । वहां के अध्यापक आला दर्जे के ज्ञानी थे । जब आइन्स्टीन पहली बार प्रिंस्टन पहुचे, तो उनका गरिमामय स्वागत हुआ ।
तदुपरांत वहां के प्रशासनिक अधिकारी ने उनसे पूछा, ‘मैं आपके लिए कौन-कौन से उपकरणों की व्यवस्था कर दूं ?’ उसका प्रश्न सुन कर आइन्स्टीन ने मुस्कुराते हुए सहजता से जबाब दिया, ‘मुझे केवल एक ब्लैक बोर्ड, कुछ चांक, थोड़े से पेपर और पेन्सिल चाहिए ।’ अधिकारी उनके द्वारा बताये गए उपकरण सुनकर आश्चर्य चिकित रह गए । उसने तो सोचा था आइन्स्टीन जैसा बड़ा वैज्ञानिक बड़े-बड़े मंहगे उपकरणों की मांग करेगा ।
वह कुछ कहता, इसके पूर्व ही आइन्स्टीन ने कहा, ‘इन वस्तुओं के अतिरिक्त मुझे बड़ी-सी टोकरी भी चाहिए ।’ अधकारी ने पूछा, ‘क्यों ?’ आइन्स्टीन ने हँसते हुए कहा, ‘क्यों की अपनी गणनाओं के दोरान मैं बार-बार गलतियाँ करूंगा और छोटी टोकरियाँ रद्दी से भर जाएँगी, इसलिए बड़ी टोकरी चाहिए ।’
आइन्स्टीन की सादगी पर अधिकारी मुग्ध हो गया । आडम्बर से दूर रहना महानता का लक्षण है । अल्प साधनों से बड़ी लक्ष्य हासिल करने वाला ही सही मायनो में महान होता है.