प्रिय पाठकों प्रस्तुत एक साहसिक प्रसंग जो ब्रिटिश शासन के समय की है । बिहार के दियारा गांव में अधिकांश लोग जाना पसंद नहीं करते थे, क्योंकि वहां जाने वालों को अक्सर बुखार जकड़ लेता था ।एक बार कोई जाता तो बीमार पर ही जाता था । ऐसे समय में आरा के एक वक्ति रघुनाथ पांडे दियरा पहुंचे । उनके पास सिर्फ एक घोड़ी थी । वो वहां झोपड़ी बना कर मस्ती से रहने लगे । वहीँ पर थोड़ी सी जमीन पर खेती करते और स्थानीय लोगों को कुश्ती सिखाते । कुश्ती के बाद वो घोड़ी पर सवार हो जाते और मैदान में उसे दोड़ाते । एक दिन रघुनाथ पांडे घोड़ी दोड़ाते जा रहे थे कि सामने से एक अंग्रेज सैमुअल घोड़े पर आया ।
अंग्रेज के राज में आतंक इतना था कि देखते ही लोग घरों में घुस जाते, किन्तु पांडेजी न तो घबराए और न अपनी घोड़ी मार्ग से हटाई । यह देखकर सैमुअल क्रोधित हो गया । उसने पांडेजी पर कोड़े से वार किया । पांडेजी ने उसका कोड़ा पकड़ लिया और इतनी जोर से खींचा कि सैमुअल घोड़े से गिर पड़ा । पांडेजी की इतनी हिम्मत देख कर सैमुअल भरक गया ।
वह उन्हें मारने के लिए दौड़ा तो पांडेजी भी भीड़ गए । वे तो पहलवान थे । उन्होंने सैमुअल को उठा के पटक दिया । तब सैमुअल उठा और पांडेजी से हाथ मिलाते हुए बोला, ‘तुम्हारे जैसा निडर मैंने कभी नहीं देखा । अब में यहाँ कभी नहीं आऊंगा आज से इस इलाके की लगान वसूली तुम्हें देता हूँ ।’ उस दिन से दोनों में पक्की मित्रता हो गई । देश आजाद हुआ तो सैमुअल ने इंग्लेंड जाते समय अपनी तिन हजार बीघा जमीन निर्धन पांडेजी के नाम कर दी ।
निर्धन पांडेजी के साहस ने उनकी तक़दीर खोल दी । “मन की मजबूती कर्मो में झलकती है और वीरतापूर्ण कर्म सदैव शुभ फलदायी होते हैं ।”