चाणक्य का पूरा नाम विष्णुगुप्त कौटिल्य था । इन्होंने विदेशी आक्रमण से त्रस्त टूटे-फूटे और बिखरे हिंदुस्तान को एकता के सूत्र में गूँथ कर उसे एक दृढ़ राजनितिक आधार प्रदान किया । कौटिल्य चन्द्रगुप्त के महान्मंत्री थे । यह भी एक विचित्र संयोग है, कि पश्चत्यता राजनितिक दार्शनिक अरस्तु से शिष्य की पराजय कौटिल्य के शिष्य द्वारा हुई । अपने शिष्य चन्द्रगुप्त को एक बहूत बड़ा सम्राट बनाने का श्रेय कौटिल्य को ही है । कौटिल्य का कोई प्रमाणिक जीवन चरित्र नहीं मिलता है । इस संबंध में स्वयं कौटिल्य ने भी विशेष प्रकाश नहीं डाला है । फिर भी यह मन जाता है कि उनका जन्म लगभग 400 BC भारत की प्राचीन एतिहासिक नगरी तक्षशिला में एक गरीब ब्रह्मण परिवार में हुआ था ।
आचार्य चाणक्य के प्रेरणात्मक विचार
Quote : विनय सबका आभूषण है ।
Quote : धर्म ही संसार को धारण किये हुए है ।
Quote : क्रोध यमराज, अर्थात काल है ।
Quote : स्वार्थी स्वार्थवश अपना दोष नहीं देखता है ।
Quote : एक गुण समस्त दोषों को ढक देता है ।
Quote : अज्ञानता के सामान कोई दूसरा शत्रु नहीं ।
Quote : क्षमा, शील से पुरुष का तप बढ़ता रहता है ।
Quote : स्पष्ट कहने वाला छली नहीं होता ।
Quote : स्त्री का बल, रूप, यौवन, सरस मीठी वाणी है ।
Quote : न्यायपूर्वक कमाया हुआ धन असली धन होता है ।
Quote : अपनी उन्नति और अवनति अपनी वाणी के अधीन है ।
Quote : पापी दूसरों को भी अपने समान पापी समझता है ।
Quote : पापियों को निंदा का तनिक भी भय नहीं हुआ करता है ।
Quote : प्रकृति का कोप सब कोपों से बड़ा होता है ।
Quote : तपस्वियों की शोभा क्षमा (सहनशीलता) से होती है ।
Quote : प्राणी नित्य जैसा अन्न खाता है, उसकी वेसी ही संतत्ति होती है ।
Quote : मनुष्य स्वयं ही अपने दुःख का कारण होता है, दूसरा नहीं ।
Quote : सच्चे मित्रों का साथ मिलने से मनुष्य को बल प्राप्त होता है ।
Quote : मनुष्य का विकाश और विनाश उसके अपने व्यवहार पर निर्भर करता है ।
Quote : जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है, उसे स्त्री तरुण तुल्य लगती है ।
Quote : मनुष्य का एक भी दोष बहूत से गुणों को दोषपूर्ण बना डालता है ।
Quote : जो आदमी केवल उम्मीद पर जीता है उसे भूखा मरना पड़ता है ।
Quote : लक्ष्मी साहस में बसती है । यह सदा सहसियों के पास रहती है । मूर्खों का बल मौन है ।
Quote : जिसके प्रति मन में द्वेष हो, उससे मधुर वाणी में बात करनी चाहिए ।
Quote : इर्ष्या असफलता का दूसरा नाम है । इर्ष्या करने से अपना ही महत्व काम होता है ।
Quote : अकर्मंन्य निकम्मा आलसी मनुष्य भूखे मरते हैं । यदि दैव आलसी को कुछ भी दे, तो उसकी दी हुई वस्तु की रक्षा भी नहीं होती ।
Quote : अग्निहोत्र के बिना वेद पढ़ना व्यर्थ है, दान के बिना यज्ञादि पूरे नहीं होते । बिना भाव के सिद्धि नहीं होती, इसीलिए भाव (प्रेम) ही सबमें प्रधान है ।
Quote : अति सर्वत्र वर्जित मानी गयी है । अति सुन्दरी होने के कारन सीता का अपहरण हो गया । अति घमंडी के कारण रावण मारा गया । अति दानी होने के कारण हरिश्चंद्र को घोर संकट उठाना पड़ा । अति मध् पान करने वाला शीघ्र मर जाता है । फलत: अति सवर्त्र वर्जित की गयी है ।
Quote : शास्त्र अनंत है, विद्या अनेकों प्रकार की है, किन्तु जीवन थोड़ा है, बाधाएं अनेक हैं । इस कारण जो सारभूत है, उसे, ही ग्रहण कर लेना चाहिए । जैसे हंस दूध और पानी में से दूध पी लेता है, पानी छोड़ देता है ।
Quote : कामवासना में अंधे हो गए को कुछ नहीं सूझता और मदांध को ही नहीं दिखाई पड़ता, इसी प्रकार लोभी भी लोभ में पर कर कोई दोष नहीं देखता है । इस कारण ऐसे लोगो को भी आँख रहते अँधा कहा गया है ।
Quote : जिस प्रकार दीपक काले अंधकार को दूर करता है और काजल उत्पन्न करता है, उसी प्रकार जो मनुष्य जैसे अन्न खाता है, उसकी वैसी ही संतान उत्पन्न होती है ।
Quote : बिना आडम्बर ( दिखावा ) के इस दुनिया में सब व्यर्थ है । यदि सर्प में विष नहीं है, तो भी फुंकार कर अपना आडम्बर बढ़ाते ही रहना चाहिए । उसका यह आडम्बर ही अपनी रक्षा करता रहेगा, वरना छोटे-छोटे बच्चे ही उसको पत्थर मार-मारकर मार डालेंगे ।
Quote : धनहीन को धन की चाह, पशुओं को वाणी, मनुष्यों को स्वर्ण ( एश्वर्य ) की चाह और देवताओं को मोक्ष की इच्छा सदैव रहती है ।
Quote : मनुष्य में दूसरों के प्रहार से बचने के लिए कठोर और कुटिल होने का गुण भी होना चाहिए ।
Quote : आग से जलते हुए एक ही सूखे वृक्ष से सारा वन जिस प्रकार जलकर भष्म हो जाता है, उसी प्रकार एक कुपुत्र सारे कुलके संताप और विनाश का कारण होता है ।
Quote : धनहीन व्यक्ति को सभी छोड़ देते हैं । मित्र, स्त्री, नौकर, स्नेहीजन भी धनहीन व्यक्ति का आदर नहीं करते ।
Quote : धनहीन व्यक्ति की बुद्धि नष्ट हो जाती है । धन की कमी से और जीवनयात्रा की चिंता से व्याकुलता बने रहने से बुद्धि धीमी पड़ जाती है और प्रतिभा सो जाती है ।
Quote : दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन और विपत्तियाँ – ये सब मनुष्यों के अपने ही दुष्कर्मरूपी वृक्ष के फल हैं ।
Quote : दरिद्रता मनुष्य के लिए मौत के समान है, जिससे जीते जी मौत का कष्ट हमेशा भोगना पड़ता है । दरिद्रतारूपी जीवन मानव का अभिशाप है । अतएव संपन्न बनें ।
Quote : गुणों से ही मनुष्य महान होता है, ऊँचे आसन पर बैठने से नहीं, महल के ऊँचे शिखर पर बैठने से भी कौवा गरुड़ नहीं हो सकता ।
Quote : प्रकृति ने सभी पदार्थों एवं जीवों में कुछ स्वाभाविक जन्मजात गुण दिये हैं । इसी प्रकार के पदार्थों एवं जीवों के अलग-अलग
Quote : वयक्तित्व में भी कुछ जन्मजात गुण होते हैं । वे अभ्यास करने या सिखने से नहीं आते ।
Quote : दान देने का भाव, वचन-माधुर्य, धैर्य एवं उचित को समझने योग्य विचार करने की क्षमता – ये चार प्रकृति प्रदत्त गुण हैं, जो सभी में नहीं होते और इनकी शिक्षा भी नहीं दी जा सकती ।
Quote : स्त्रियों के गुरु पति होते हैं और अतिथि सबके गुरु होते हैं । ब्राहमण, क्षत्रिय एवं वैश्य के गुरु अग्नि हैं तथा चारों वर्णों के गुरु ब्राहमण हैं ।
Quote : इस जगत की तुलना एक कड़वे वृक्ष से भी की जा सकती है, जिस पर अमृत समान दो फल उगते हैं – मधुर वचन और सज्ज्न्नों की संगति ।
Quote : शक्तिहीन साधु बनता है । धनवान ब्रह्मचारी बनता है । रोगी देवता का भक्त बनता है । बूढी स्त्री सबसे ज्यादा पतिव्रता बनती है । सब ढोंगी है । बलवान साधु नहीं बनता, धनवान ब्रह्मचारी नहीं होता । स्वस्थ पुरुष भगवान का जप नहीं करता और यौवनमयी रूपसी मनसा,वाचा, कर्मणा से शायद ही पतिव्रता होती है । यह सब विवशता का नाटक है ।
Quote : शांति के बराबर कोई ताप नहीं, संतोष से बढ़कर दूसरा सुख नहीं, तृष्णा (लालच) से बड़ा कोई रोग नहीं और दया के बराबर कोई धर्म नहीं है ।
Quote : जिसका ह्रदय सब जीवों पर दयाभाव से सर्वदा द्रवित हो जाता है, उसको ज्ञान, मोक्ष, जटा और भस्म लगाने से क्या ?
Quote : दान, यज्ञ, होम, बलिक्रिया, आदि सभी पुण्यकर्म क्षीण हो जाते हैं, किन्तु सुपुत्र को दिया गया दान एवं जीवों को दिया गया अभयदान कभी नष्ट नहीं होता है ।
Quote : राजा, वेश्या, यमराज, अग्नि, चोर, बालक, भिक्षुक, और कहीं का चुगलखोर –ये आठों दुसरे के दुःख को नहीं जानते हैं ।
Quote : दुष्ट को कितना भी सिखाया जाय, परन्तु उसमें साधुता प्रवेश नहीं हो सकता । जैसे नीम की जड़ को कितना भी दूध , घी से सींचो, पर उसमे मीठापन नहीं आ सकता ।
Quote : दुष्ट लोग मन की दुष्टता को तो छिपाए रखते हैं और केवल जीभ से अच्छी बातें करते हैं । मन से परपीड़ा देने की उपाय सोचते हैं और वाणी से परोपकर, देश सेवा, साधुता आदि का बखान करते हैं ।
Quote : दुष्ट मनुष्यों को सज्जन बनाने के लिए इस पृथ्वी पर कोई उपाय नहीं है । जैसे माल त्याग करने वाली इन्द्रियों को सौ-सौ बार धोएं, पर वह अन्य इन्द्रियों की भांति शुद्ध नहीं हो सकती हैं ।
Quote : देव की करनी कोई नहीं बदल सकता । विधाता के रचना-विधान को कौन बदल सकता है ।
Quote : देवता न काठ में है, न पत्थर में है, न मिट्टी के मूर्ति में है, देवता भाव में होता है, अतएव भाव ही सबका कारण है ।
Quote : अपनों से बड़ो से द्वेष करने से निश्चित रूप से हानि होती है । राजा से द्वेष करने पर मृत्यु का खतरा है । दुश्मन से द्वेष करने पर धन का नाश होता है । ब्राहमण से द्वेष करने पर कुल का क्षय होता है । इस कारण द्वेष नहीं करना चाहिए ।
Quote : किसी के साधारण दोष को देख कर उसके महत्वपूर्ण गुणों को अस्वीकार नहीं करना चाहिए ।
Quote : जन्म के अंधे नहीं देखते हैं, कामान्ध को भी नहीं दिखाई देता है । मतवालों को भी नहीं सूझता है स्वार्थी स्वार्थवश अपना दोष नहीं देखता है ।
Quote : झूठ बोलना, बिना विचारे किसी काम को उतावलेपन में करना, कपट, मुर्खता, लालच, अपवित्रता और दयाहीनता – ये सब स्त्रिओं के स्वभाविक दोष हैं ।
Quote : अपार धनशाली कुबेर भी यदि आमदनी से अधिक खर्च करे, तो कंगाल हो जाता है ।
मित्र, स्त्री, सेवक, भाई-बन्धु भी धनहीन हो जाने पर साथ छोड़ देते हैं, परन्तु फिर धनी हो जाने पर पुन: आश्रय में आ जाते हैं, अर्थात धन ही इस यूग में सब कुछ है ।
जिसके पास धन है, उसी के पास मित्र हैं, धनी के ही बांधव हैं, धनी ही लोक में सम्मानित पुरुष हैं, धनी ही संसार में जीवित है, अर्थात उसकी ही कीर्ति अमर होती है ।
बुद्धिमान मनुष्य थोरे से लाभ के पीछे बहूत की हनी नहीं करता । बुद्धिमानी इसी में है मनुष्य थोरा व्यय करके बहूत की रक्षा करे ।
इस चराचर जगत में लक्ष्मी, प्राण, यौवन और जीवन सबकुछ नाशवान है, केवल एक धर्म ही अटल है ।
इन्द्रियों को वश में रख कर जेसे बगुला शिकार के लिए साधन करता है, उसी प्रकार विद्वान लोगो को इस काल और बल को समझ कर कार्य करना चाहिए । इसकी शिक्षा बगुला से ग्रहण कीजिये ।
इस संसार में नरक में रहने वालों के छ: लक्षण होते हैं- 1. अत्यंत क्रोधी स्वभाव 2. कटु वचन बोलना 3. दरिद्रता 4. अपने स्वजनों से इर्ष्या और वैर रखना 5.नीच लोगो की संगति और 6. नीच कुल के लोगों की सेवा-चकारी करना ।
पुरूषों की अपेक्षा स्त्रिओं का भोजन दुगुना, लज्जा चौगुना,साहस छ: गुना और काम (रति इच्छा) आठ गुना अधिक होता है ।
जिस घर में नारी का आदर नही होता, वहाँ से लक्ष्मी, धर्म और सुख का वास उठ जाता है ।
पहले किया हुआ भोजन ठीक पाच जाने पर दूसरा भोजन करने वाले के पास व्याधि नहीं फटकती है ।
स्त्री न तो दान देने से, न सैकड़ो उपवास (व्रत) करने से और न तीर्थो के सेवन से शुद्ध होती है, बल्कि अपने पति के चरणोदक से शुद्ध हो जाती है ।
कठिन कार्य पड़ने पर सेवक की, संकट के समय भाई-बंधू की, आपातकाल में मित्र की तथा धन के नाश हो जाने पर स्त्री की परीक्षा होती है ।
प्रकृति हर पल तुम्हारी परीक्षा लेती है और वेसा ही फल देती है ।
हाथों की शोभा दान देने से है, कंगन पहनने से नहीं । शरीर की शुद्धि जल; से स्नान करने से होती है, चन्दन का लेप करने से नहीं । मनुष्य को सच्चा सुख अपने सम्मान में ही प्राप्त होता है, सुस्वाद भोजन एवं सुन्दर वस्त्र पहनने से नहीं । मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान से होती है, भक्ति के पाखंड से नहीं ।
जिस प्रकार स्वयं आग से जलता हुआ एक ही सुखा वृक्ष समस्त वान को जला देता है, उसी प्रकार एक ही कुपुत्र अपने वंस के नाश का कारन बनता है । पुत्र सभी संकटों से माता-पिता की रक्षा करता है ।
एक गुणी पुत्र ही श्रेयस्कर है, न की सैकड़ो मुर्ख पुत्र । चन्द्रमा अकेला ही अंधकार को दूर कर देता है, जबकि हजारों तारें कुछ नहीं कर पाते ।
अधिक दिन जीवित रहने वाला मुर्ख पुत्र से, पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र अच्छा होता है; क्योंकि मरा हुआ थोड़े ही दुःख का कारण होता है, किन्तु मुर्ख पुत्र जब तक जीता है, तब तक रुलाते रहता है ।
जो बुद्धिहीन हैं, उनके लिए शास्त्र-वेदादि भी कोई कल्याण नहीं कर सकते, अर्थात उनके लिए वे व्यर्थ हैं, जैसे नेत्रहीन के लिए दर्पण क्या कर सकता है, अर्थात दर्पण अंधे के सामने रख दिया जाये, तो भी वह अपना चेहरा नहीं देख सकता ।
धार्मिक कथा सुनने पर, श्मसान पर, रोगियों और दुखियों को जो बुद्धि उत्प्पन होती है, वह यदि सर्वदा बनी रहे, तो कौन ऐसा है, जो इस संसार के बंधन से मुक्त न हो जाये ?
धन के नाश को, नमन के संताप को, घर के बुराईयों को, किसी ठग द्वारा ठगे जाने को और नीचों द्वारा अपमान को बुद्धिमान कभी किसी से न कहे ।
भय से मनुष्य को तब तक डरना चाहिए, जब तक वह नहीं आया है, परन्तु जब आ ही जाये, तब निर्भय होकर उस पर प्रहार करना चाहिए ।
भावना के बल पर सब कार्य संपन्न होते हैं । पहले मनुष्य को अपनी भावना इस अनुरूप बनानी चाहिए ।
जो संकट आने से पूर्व अपना बचाव कर लेता है और जिसे ठीक समय पर आत्मरक्षा का उपाय सूझ जाता है – ए दोनों ही प्रकार के व्यक्ति सुख से अपनी वृधि करते हैं, परन्तु जो भाग्य में लिखा होता है, वही होगा, ऐसा सोचने वाला नष्ट हो जाता है ।
जिसके पास न विद्द्या है, न तप है, न दान है, न गुण है, वे इस लोक में पृथ्वी पर भार होकर मनुष्य रूप में पशु ही हैं ।
मर्यादा के बाहर किया गया कार्य उनका बल, प्रतिस्ठा, शक्ति को नष्ट कर देता है । उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता है ।
प्रवासकाल के दौरान परदेश में मित्र विद्या होती है, घर में मित्र स्त्री होती है, रोगियों का मित्र ओषधि और मरणोपरांत धर्म ही मित्र होता है ।
कुमित्र पर विश्वास नहीं करना चाहिए । मित्र पर भी अत्यधिक विश्वास नहीं करना चाहिए । कभी कुपित होकर मित्र सभी गोपनीय बातों को प्रकट कर सकता है ।
शास्त्र को जानने वाला भी जो पुरुष लोक-व्यवहार में पटू नहीं होता, वह मुर्ख के समान होता है ।
मूर्खों से सज्जनता का व्यवहार न करके उनके साथ उनकी समझ में आने वाली दंड की भाषा में व्यवहार करना चाहिए ।
मनुष्य शास्त्रों को पढ़कर अथवा सुनकर धर्म को जानता है और शास्त्र के सुनने से ही दुर्बुद्धि का त्याग करता है । शास्त्र को सुनकर ज्ञान प्राप्त करता है एवं शास्त्र को सुनकर मोक्ष को प्राप्त करता है ।
संसार का रहस्य जानते हुए कर्तव्य पालन करने वाले को मृत्यु का भय नहीं होता है । वह सदैव मृत्यु का आलिंगन करने को प्रसन्नतापूर्वक तैयार रहता है ।
जो जैसा रहता है, उसका वेश वैसा ही होता है । मनुष्य का रहन-सहन देखकर इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है की वह शेर है या गीदड़ ।
जिसको रह्श्य गोपनीय रखना नहीं आता, वह सफलता का मुंह ह्नाही देख सकता ।
दीपक अंधकार का भक्षण करता है और कालिख को जन्म देता है । जो व्यक्ति जैसे खाता-पीता है, उसकी संतान से उसे पता चल जाता है । खानदान का प्रभाव सन्तान पर आवश्य पड़ता है ।
दूसरों के धन पर लालच नहीं करना चाहिए । यह महाघातक है ।
मधुर वचन से सभी जीव संतुस्ट रहते हैं, इसीलिए सर्वदा प्रिय वचन बोलना चाहिए । मीठे बोल में दरिद्रता क्यों करें ?
सुन्दर स्वरूप, तरुण अवस्था, ऊँचे कुल में जन्म होना, इन सबके रहते भी यदि विद्द्या रूपी भंडार नहीं है, तो वे मनुष्य सुगंध रहित पलाश आदि के पुष्प की भांति शोभा नहीं पाते ।
विद्द्वान की प्रसंसा सभी लोक में होती है । वह सर्वत्र पूजा जाता है । विद्द्या से सभी प्रकार का लाभ प्राप्त होता है, विद्द्या की पूजा स्वत्र होती है ।
जिस प्रकार मछुआरा जल में प्रवेश कर के अनेक संकटों का सामना कर मछली पकरता ह, उसी प्रकार पुरुषार्थी मनुष्य भी संकट में कूद कर सफलता रूपी अपने देव को विघ्नों से बचा का सुरक्षित रखता है और अपना काम बन लेता है , उसी प्रकार विघ्नों को हटा कर अपना काम बनाना चहिये ।
आपत्ति काल के लिए अभी धन की रक्षा करें, धन से बरा काम स्त्री की रक्षा करें एवं स्त्री दोनों से बढ़ कर अपनी रक्षा करनी चाहिए ।
बुद्धिमान वाय्क्तिओं को चाहिए की अच्छे कुल की चाहे कुरूप कन्या ही क्यों न हो, उससे विवाह कर लें, किन्तु स्वरूप वती नीच कुल की कन्या का वरण न करें; क्योंकि विवाह समान कुल में ही उत्तम होता है ।
जो व्यक्ति चारों वेदों को और धर्म शास्त्रों को पढने के बाद भी यदि आत्म गायन से वंचित है, तो वह कलछी के समान है, जो सब व्यंजनों पर चलती है, परन्तु उसका स्वाद नहीं जानती ।