कोशी, मिथिला और सरकारें- खट्टरकाका की डायरी से

सन 2008 में जब कोशी कोसी में बाढ़ की वजह से मिथिला का एक बहुत बड़ा हिस्सा तबाह हुआ था उस समय मैंने कोशी पर एक ब्लॉग लिखा था कि कैसे स्वतंत्रता

तलत महमूद ; दिले नादां तुझे हुआ क्या है !

भावुक, कांपती, थरथराती, रेशमी आवाज़ के मालिक तलत महमूद अपने दौर के बेहद अजीम पार्श्वगायक रहे हैं। अपनी अलग-सी मर्मस्पर्शी अदायगी के बूते उन्होंने अपने समकालीन गायकों मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, मन्ना डे और हेमंत कुमार के बरक्स अपनी एक अलग पहचान बनाई थी।

शहर को भी खूबसूरत, गाँव के लोग ही बनाते हैं !

शहर में कोलाहल बढ़ गयी है और गर्मी भी। ये लोगों को तंग कर रही है । रात से ज्यादे दिन सुनसान हो रहे हैं । लोग स्विचों की हवा चाह रहे हैं । बन्द कमरे भर रहना चाह रहे हैं ।

मार्क्स के आधारभूत सिद्धांत का समर्थक हूँ, समर्थकों का समर्थक नहीं !

दुनिया में चारो तरफ शोषण व्याप्त था, मजदूरों का शोषण । उनके न तो काम के घंटे निश्चित थे और न ही कोई निश्चित मजदूरी । छुट्टियों का तो सवाल ही छोड़िये । यहाँ तक की यदि किसी मजदूर/कर्मचारी की मृत्यु हो जाए या वो कारखाने में कार्य के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो उसे कोई मुआवजा भी नहीं मिलता था ।

एक कवि जो रमता जोगी, निठट्ठ गंवार और स्थानीय येट ग्लोबल थे

एक कवि जो रमता जोगी थे । निठट्ठ गंवार, स्थानीय येट ग्लोबल थे । हर जगह घुमें, घाट-घाट पहुंचे, सबसे मिले-सबसे जुड़े लेकिन फिर भी अपना निजी गुण नहीं छोड़ा । सच बोलने की आदत नहीं गई, सरकार सिस्टम ने जब भी अनाचार अपनाया बाबा खुलकर विरोध किए ।

माँ मैं मर रही हूँ, बचा लो मुझे !!!!

माँ कैसी हो तुम ? रो मत ! ये जो भी हुआ ये सब कैसे माँ ? तुम तो कहती थी पापा हमेशा मेरी रक्षा करेंगे , भैया मुझे कुछ नहीं होने देंगे | पूरा समाज है हमारे साथ | पर सुनो माँ , मैं सच कह रही हूँ , कोई हमारा नहीं , लड़की बस शरीर है इनके लिए | मार डाला इन्होंने मुझे , मेरी नस नस काट डाली |

थोड़ी सी दारू मिल जाय तो ऑर्केस्ट्रा को भी लाइव कर देंगे पत्रकार जी !

जमीन बदल गई तो मायने बदल गए। मायने बदले तो चेहरा बदल गया,रहन-सहन और जीवन की शर्तें बदल गईं। वैश्विक अर्थशास्त्र की इस बाढ़ के चलते खासा बदलाव आ गया है समाज में। तो फिर कैसा पत्रकार और कैसा दिवस।

क्या किसी अजनबी से प्रेम हो जाना मात्र एक कल्पना है ?

किसी अजनबी से प्रेम का हो जाना, इसकी पुष्टि करने के लिए अभी तक कोई संस्था ब्रह्माण्ड में नहीं है और न इसकी डिग्री नापने के लिए किसी भी तरह के यूनिट व् किसी प्रकार के बैरोमीटर का आविष्कार अभी तक नहीं हो पाया है फिर भी व्यक्ति अपने विवेक का उपयोग करके इस बेहद से कल्पनाशील भाव में अपनी जिंदगी या तो अपने प्रेम के साथ गुजार देता है नहीं तो विरह में अकेले रह जाता है और बहुत से केस में वो अपने शारीरिक जरूरतों के कारण समाज द्वारा अप्रूव्ड रिश्ते में खुद बाँध लेता है और कल्पना का गुब्बारा फोड़ देता है |

जैसे कैंसर का ईलाज़ सिगरेट की डब्बी तोड़ना नहीं हो सकता

अगर कोई शख़्स कैंसर से जूझ रहा हो तो उसका ईलाज़ सिर्फ सिगरेट की डब्बी तोड़ देने भर से नहीं हो सकता । अगर सिगरेट ही उसकी बीमारी की वजह रही हो फिर भी नहीं बल्कि ईलाज़ का सही तरीक़ा ज़रूरी होता है । 

लिंग विभेद / Gender Sensitization

महिलाओं को सबसे अधिक शोषित महिला ही करती है । खेत बेच के बेटा को IIT की तैयारी के लिए भेज दो ! और बेटी “बी.ए.ड” कर ले तो बहुत है । एक बहु के लिए उसका ससुर सबसे अच्छा इंसान होता है लेकिन सास दुनियाँ की सबसे बेकार औरत आखिर क्यों ? ये हजारों वर्ष पूर्व प्रेक्टिस में लाया जा चुका है जिसे खत्म होने में न जाने कितना वर्ष और लग सकता है । हमारे समाज के अनुसार एक लड़की प्रत्येक माह असुद्ध होती है लेकिन वो एक सामान्य बायोलॉजीकल प्रॉसेस है । घर – परिवार, समाज, रीति-रिवाज एवं परम्परा सभी स्तर पे “लिंग विभेद” कायम है ।