वो ऊँगलियों का नहीं रूह का जादू होगा !

भारतीय शास्त्रीय संगीत के पुरोधा और देश के महानतम सरोद-वादक उस्ताद अली अकबर खां को सरोद को विश्वव्यापी मान्यता और लोकप्रियता दिलाने का श्रेय जाता है। वे प्रसिद्द मैहर घराने के संस्थापक उस्ताद अल्लाउदीन खां के पुत्र, संगीतज्ञ अन्नपूर्णा देवी के भाई और विश्वप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रविशंकर के साले थे।

मैं, मेरा गाँव और आम का गाछी

मेरे गाछी का बम्बई आम बोना गया है गजपक्कू मुझे बहुत पसंद है इसलिए मेरे बार-बार व्यस्तता बताने के बावजूद माँ का आदेश था की कल सुबह आम टूटने से पहले गाँव पहुँचो ! उम्र के लिहाज से युवा अवस्था मे प्रवेश कर चुका हूँ लेकिन दिल से बच्चा रजनीश को क्या और कौन पसन्द है माँ से बेहतर कौन समझेगा भला ।

माटी को निर्जलीकरण हो गया है

अभी जहानाबाद गया था, जल विहीन है पूरा क्षेत्र | गर्द का गुबार उठता है हल्की सी हवा चलने भर से | परती खेत धूप में जल रहा है | ये स्थिति नवादा, जमुई जैसे कई अन्य क्षेत्रो में भी हो रहा है |

एक थे जनकवि घाघ !

बिहार और उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक लोकप्रिय जनकवियों में कवि घाघ का नाम सर्वोपरि है। सम्राट अकबर के समकालीन घाघ एक अनुभवी किसान और व्यावहारिक कृषि वैज्ञानिक थे। सदियों पहले जब टीवी या रेडियो नहीं हुआ करते थे और न सरकारी मौसम विभाग, तब किसान-कवि घाघ की कहावतें खेतिहर समाज का पथप्रदर्शन करती थी।

“खा लो, नहीं तो एक बगड़ा का मौस घट जायेगा!”

गाँव से दूर रहना ही “हेहरु” हो जाना हो जाता है। और तब जब आप छात्र-जीवन का निर्वहन कर रहे होते हैं। कब खाए? नहीं खायें? किसी को कोई परवाह नहीं। बंद कमरे में आपको कोई नहीं पूछता। रूम पार्टनर होगा भी तो उसकी भी परिस्थिति आपके ही बरबार होती है। जबतक चल रहा है तबतक तो ठीक है, नहीं तो किसी दिन अंठा कर सो गये। या फिर दुकान का कोई आइटम खाइए जो भूख मिटाने मात्र के लिये भी काफी नहीं होती है। खाने इत्यादि के चक्कर में मैंने कितनों को शहर छोड़ते देखा है।

इश्क कीजिए, फिर समझिये, ज़िन्दगी क्या चीज है..

अवसाद बीमारी है ! बहुत भयंकर वाली । जिसका इलाज समय से ना होने पर लोग जीते जी जिन्दा लाश की तरह होते हैं । आत्महत्या करने का जी करता है ! आज कल के समय में यह किसे और कब हो जाए कुछ पता नहीं । सामाजिक रूप से मान-मर्दन, शारीरिक रूप से बिमार, किसी अपने से मिला धोखा, खुद से कुछ ज्यादा उम्मीद, बहुत सारे कारण होते हैं । बड़े से बड़े जांबाज लोग अवसाद में मौत को गले लगा रहे हैं ।

का करें सर, पैसा तो है नही ! चक्की बेच दें ?

भरत आज भरथा से भरत भाई हो गए हैं । आज आप इनके गांव जाओ और किसी को पूछो कि भरत जी का घर कहाँ है तो लोग आपको इनके घर तक पहुँचा देंगे, पर चलते-चलते जरूर पूछ देंगे कि कोनों कंपनी से आये हैं का ? बहुते कंपनी वाला सब उनके पास आते रहता है ।

त्रिशंकु वाली स्थिति है जहां ना आप मूलवासी हैं ना ही प्रवासी

गाँव छोड़ने के बाद चित्त उद्विग्न है। गाँव में बाल सखा किशुन से मुलाकात हुई। पूछा कि आजकल क्या कर रहे हो तो जबाब दिया की इज्जत बचा कर दो वक्त की रोटी कमा रहा हूँ। तुम लोगों ने गाँव छोड़ दिया कभी खोज खबर भी नहीं लेते। किसी न किसी को तो गाँव में रहना चाहिए सो मैं गाँव में ही रहता हूँ।

डियर कार्ल मार्क्स !

जब आपके अनुयायी पिछले दस सालोँ में जे.एन.यू मे दलितोँ के उत्थान, गरीबोँ को न्याय इत्यादि पर सेमिनार आयोजित कर रहे थे, तो भारत के निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का दो यूवक फ्लिपकार्ट बनाने में जुटे थे.