कभी अलविदा ना कहना

अपने सार्वजनिक जीवन में बेहद चंचल, खिलंदड़े, शरारती और निजी जीवन में बहुत उदास, खंडित, तन्हा किशोर कुमार रूपहले परदे के सबसे रहस्यमय और सर्वाधिक विवादास्पद व्यक्तित्वों में एक रहे हैं जिनकी एक-एक अदा, जिनकी एक-एक हरकत उनके जीवन-काल में ही किंवदंती बन गईं।

तंग आ गए हैं कशमकश-ए-ज़िन्दगी से हम !

गुरुदत्त उर्फ़ वसंत शिवशंकर पादुकोन को हिंदी सिनेमा का सबसे स्वप्नदर्शी और समय से आगे का फिल्मकार कहा जाता है। वे वैसे फिल्मकार थे जिनकी तीन फिल्मों – ‘प्यासा’, ‘साहब बीवी गुलाम’ और ‘कागज़ के फूल’ की गिनती विश्व की सौ श्रेष्ठ फिल्मों में होती हैं।

डॉ लक्ष्मण झा : आधुनिक विदेह

डॉ लक्ष्मण झा का जन्म दरभंगा जिला के रसियारी गाँव मे हुआ था। शुरुआती पढाई प्रसिद्ध विद्वान पंडित रमानाथ झा के सानिध्य में हुआ। बचपन से ही भौतिक और सांसारिक चीजों से प्राकृतिक दूरी सी हो गई थी। घर वाले बचपन मे ही बियाह करवाना चाहते थे लेकिन वो सीधे मना कर देते, बारंबार विवाह प्रस्ताव से पड़ेशान होकर एक बार घरवालों को डराने के लिए वो हाथी से कूद गए। कहीं सन्यास लेकर घर न छोड़ दे घर वालों ने इस डर से शादी के लिए कहना छोड़ दिया

जब बिजली गिरे ! तो क्या करें ?

मित्रों ! राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भारत सरकार द्वारा जारी किया गया सूचना जो जनहित में है । हम सभी इसे ध्यानपूर्वक पढ़े और अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचायें । जब बिजली गिरे ! तो क्या करें ?

हो जाएं सचेत ! लगातार बढ़ रहा है ‘जुवेनाइल क्राइम’

वैसे तो हिंसा हमारी प्रवृति में शामिल हो गयी है और ये एक वैश्विक समस्या के रूप में उभर रहा है । चाहे रेयन इंटरनेशनल स्कूल में 16 वर्ष के बच्चे की हत्या हो या हरियाणा में 18 वर्ष के बच्चे द्वारा स्कूल प्रिंसिपल की हत्या या फिर सहरसा में लगातार हो रही हिंसा, युवाओं की संलिप्तता लगातार बढ़ रही है। ये हमारे समाज के लिए एक अलार्मिंग सिचुएशन है और इसपर समय रहते काबू पाना होगा। यहाँ बिंदुवार कुछ कारणों को मैं इंगित करना चाहूँगा 

योग जैसे विज्ञान को राजनीति से मुक्त रखा जाना चाहिए

योग भारतीय संस्कृति के महानतम अवदानों में एक है । योग कोई शारीरिक कसरत अथवा सिक्स पैक बनाने का साधन नहीं है । यह न कोई धर्म है, न धार्मिक कर्मकांड का हिस्सा । अपने मूल स्वरुप में यह आत्मा का विज्ञान है ।

सोशल मीडिया का बढ़ता दबाव और ख़ुद को भुलाते हम !

“यूँ तो हमारे ऊपर सोशल मीडिया का दबाव इस क़दर तक बढ़ चला है कि हम ख़ुद का हीं स्वाभाविक चाल चरित भूल गए हैं, किंतु हालात सोचनीय इस बात को लेकर है की इस होड़ में कई बार हम ख़ुद तक को धोखा देने लगते हैं”

विभाजन काल का मुक़म्मल दस्तावेज है – “पाकिस्तान मेल”

मैंने बहुत ज्यादा किताबें पढ़ी भी नहीं है और जो पढ़ी हैं उनमें 4-5 किताबों ने मुझे खासा प्रभावित किया है । उन्हीं 4-5 में से एक है – पाकिस्तान मेल । लेखक, पत्रकार खुशवंत सिंह की ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ का सुप्रसिद्ध लेखिका उषा महाजन ने बेहतरीन हिंदी अनुवाद किया है ।

राजकमल चौधरी न मंटो थे, न गिंसबर्ग और न ही मुक्तिबोध

आज हिंदी और मैथिली के कवि-कथाकार राजकमल चौधरी की पुण्यतिथि है. 51वीं. जिंदा होते तो 90 की उम्र में पहुंचने वाले होते. यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि उनका बुढ़ापा कैसा होता. बहरहाल वैसा नहीं होता, जैसा पिछले एक हफ्ते से दिख रहा है. फेसबुक पर इन दिनों राजकमल चौधरी फिर से जिंदा हो गये हैं. बहसों में, तुलनाओं में, उपेक्षाओं के पक्ष और विपक्ष के साथ और इस स्टेटमेंट के साथ कि हिंदी में राजकमल को वह नहीं मिला जिसके वे अधिकारी थे.