अरुणा आसफ़ अली भारतीय स्वाधीनता संग्राम की एक महान सेनानी थी. पद्मविभूषण और सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारतरत्न” जैसे पुरस्कार से समानित अरुणा जी “ग्रांड ओल्ड लेडी” के नाम से प्रसिद्ध हैं.
शुभ नाम : अरुणा आसफ़ अली / Aruna asaf ali
जन्म : 16 जूलाई 1909, अवसान : 29 जुलाई 1996 (87 वर्ष )
जन्मस्थान : तत्कालीन पंजाब के कालका नमक स्थान पर ( वर्तमान में हरियाणा में है )
पिता : उपेन्द्रनाथ गांगुली , माता : अम्बालिका देवी
शिक्षा : लाहौर और नैनीताल से अपनी शिक्षा पूर्ण की ( स्नातक )
पुरस्कार : 1975 में “लेनिन पुरस्कार” , 1991 में “जवाहरलाल नेहरु पुरस्कार” , 1992 में “पद्मविभूषण” , एवं 1997 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारतरत्न” से नवाजा गया
स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ़ अली की जीवनी
भारतीय स्वाधीनता संग्राम की नायिका अरुणा आसिफ़ अली का जन्म तत्कालीन पंजाब के कालका नमक स्थान पर एक बंगाली ब्रह्मण परिवार में हुआ था. बचपन से ही अद्भुत प्रतिभावान अरुणा जी की शिक्षा-दीक्षा लाहौर और नेनिताल से सम्पन्न हुई. स्नातक में उत्तीर्ण होने के बाद इन्होंने गोखले मेमोरियल स्कूल कलकता में शिक्षक के रूप में कार्य प्रारम्भ किया. परिवार के विरुद्ध जा कर अरुणा जी इलाहबाद कांग्रेस पार्टी के नेता आसफ़ अली से प्रेम विवाह की.
जयप्रकाश नरायण, डॉ राममनोहर लोहिया जैसे समाजवादीयों के विचार से प्रभावित अरुणा जी विवाह के उपरांत भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपनी भूमिका प्रस्तुत करने लगी. नमक सत्याग्रह के दौरान सार्वजनिक सभा करने के कारन उन्हें जेल जाना पड़ा. गाँधी इरविन समझौता 1931 में सभी बंदियो को छोड़ दिया गया परन्तु उन्हें नहीं छोड़ा गया. स्त्री के साथ इस भेदभाव के कारण सभी स्त्रियाँ जेल से निकलने से मना कर दी. फिर गाँधी जी के प्रयास से उन्हें छोड़ा गया. इस दौरान इन्होंने जेल में हो रहे कैदियों पर दुर्व्यवहार एवं वयस्था को लेकर अनसन भी किया.
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इन्होंने मुम्बई के गोवालिया मैदान में कांग्रेस का झंडा फ़हराया जिसके लिए भी उन्हें याद किया जाता है. इस दौरान इन्होंने भूमिगत रहकर कांग्रेस का प्रचार-प्रसार एवं अपने साथियों का नेतृत्व किया. गांधीजी और अन्य नेताओ के गिरफ्तारी के बाद ब्रिटिश सरकार के विरोध में सभाएं की. और जेल से बाहर रह रहे कांग्रेस के लोगो को नेतृत्व प्रदान किया. 1942 से लेकर 1946 तक पुरे देश में दिल्ली, कलकता, मुंबई आदि घूम-घूम कर सभाएं की किन्तु गिरफ्तार नहीं हुई. ब्रिटिश सरकार द्वारा सारी सम्पत्ति ज्ब्द्द कर लिया गया एवं 5,000 का इनाम भी रखा गया. 1946 में वारंट रद्द होने के बाद उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1948 में अरुणा जी कांग्रेस छोड़ कर “सोसलिस्ट पार्टी” में शामिल हुई. और फिर 1950 में उन्होंने अपनी एक अलग से पार्टी बनायी “लेफ्ट स्पेस्लिस्ट पार्टी” और पूरी तन्मयता से मजदूर-आंदोलन में सक्रिय हो गई, 1955 में “लेफ्ट स्पेस्लिस्ट पार्टी” का विलय “भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी” में हो गया, जिसमें उन्हें “ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस” का उपाध्यक्षा बनाया गया. फिर सन 1958 ई. में उन्होंने “भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी” भी छोड़ दी. सन 1964 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात वे पुनः ‘कांग्रेस पार्टी’ से जुड़ीं.
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली सन् 1958 ई. में “दिल्ली नगर निगम” की प्रथम महापौर चुनी गईं. महापौर बनने के बाद अरुणा जी ने दिल्ली के साफ़-सफाई , स्वस्थ एवं अनेकों विकासात्मक कार्य किये और निगम के कार्य प्रणाली में भी सुधार किये. अपने जीवन काल में अरुणा जी बहूत सारे समाजिक संगठनों से जुड़ी रहीं जैसे- “नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन”, “ऑल इंडिया पीस काउंसिल” तथा “इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी” आदि संस्थाओं के साथ इन्होंने निष्ठा पूर्वक कार्य किये.
1975 में “लेनिन पुरस्कार” , 1991 में “जवाहरलाल नेहरु पुरस्कार” , 1992 में “पद्मविभूषण” , एवं 1997 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारतरत्न” से सम्मानित श्रीमती अरुणा आसफ़ अली का सन 29 जुलाई 1996 (87वर्ष) की अवस्था में अवसान हो गया. सम्पूर्ण भारतवर्ष भारतीय स्वाधीनता संग्राम के “ग्रांड ओल्ड लेडी” को युगों-युगों तक स्मरण रखेगा.