भावुक, कांपती, थरथराती, रेशमी आवाज़ के मालिक तलत महमूद अपने दौर के बेहद अजीम पार्श्वगायक रहे हैं। अपनी अलग-सी मर्मस्पर्शी अदायगी के बूते उन्होंने अपने समकालीन गायकों मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, मन्ना डे और हेमंत कुमार के बरक्स अपनी एक अलग पहचान बनाई थी।
उनके संगीत सफ़र की शुरूआत 1939 में आल इंडिया रेडियो, लखनऊ से ग़ज़ल गायक के रूप में हुई थी। एच.एम.वी द्वारा उनकी गज़लों का एक रिकॉर्ड ज़ारी होने के बाद फिल्म संगीतकारों का ध्यान उनकी तरफ गया। फिल्मों में उन्हें पहला ब्रेक ‘शिक़स्त’ के गीत ‘सपनों की सुहानी दुनिया को’ से मिला, लेकिन ख्याति मिली उन्हें 1944 में गाए गीत ‘तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी’ से। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। खूबसूरत चेहरे वाले तलत महमूद ने अपने आरंभिक दौर में गायन के साथ कुछ फिल्मों में नायक की भूमिकाएं भी निभाई, लेकिन कई महान अभिनेताओं के उस दौर में अभिनेता के रूप में उनकी कोई पहचान न बन सकी। उसके बाद उन्होंने अपना सारा ध्यान अपनी गायिकी पर केंद्रित कर दिया।
उनके गाए कुछ कालजयी गीत हैं – चल दिया कारवां, हमसे आया न गया तुमसे बुलाया न गया, जाएं तो जाएं कहां, ऐ मेरे दिल कहीं और चल, सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया, तस्वीर बनाता हूं तस्वीर नहीं बनती, आसमां वाले तेरी दुनिया से जी घबड़ा गया, दिले नादां तुझे हुआ क्या है, ये हवा ये रात ये चांदनी, इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा, आंसू समझ के क्यों मुझे आंख से तूने गिरा दिया, शामे ग़म की क़सम, जलते हैं जिसके लिए, मेरी याद में तुम न आंसू बहाना, फिर वही शाम वही गम वही तन्हाई है, मैं तेरी नज़र का सरूर हूं, ज़िंदगी देने वाले सुन, मैं दिल हूं एक अरमान भरा, अंधे ज़हान के अंधे रास्ते, अश्कों में जो पाया है, रात ने क्या क्या ख्वाब दिखाए, ऐ गमे दिल क्या करूं ऐ वहशते दिल क्या करूं, प्यार पर बस तो नहीं है मेरा, तेरी आंख के आंसू पी जाऊं, होके मज़बूर मुझे उसने भुलाया होगा आदि।
भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित इस महान गायक की पुण्यतिथि पर हार्दिक श्रधांजलि !
आलेख : पूर्व आई० पी० एस० पदाधिकारी, कवि : ध्रुव गुप्त