मशहुर शायरियाँ और शायर

प्रिय पाठकों प्रस्तुत है, दुनियां के मशहुर शायरों की प्रेरणात्मक शायरियाँ …जिनमें मिर्ज़ा ग़ालिब, मोहम्मद इक़बाल, अकबर इलाहाबादी, मुनव्वर राणा, बशीर बद्र, अहमद फ़राज, जौहर, अख्तर अंसारी, बहज़ाद लखनवी, फ़िराक, गुलज़ार…इत्यादि शायरों की शायरियाँ….

Rose Vicharbindu

  1. ख़ुदी को कर बुलंद इतना की, हर तक़दीर से पहले,

ख़ुदा बंदे से पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है  । 

– मोहम्मद इक़बाल


2. कुछ इस तरह मैंने जिन्दगी को आसं कर लिया,

किसी से माफ़ी मांग ली, किसी को माफ़ कर दिया  । 

–  मिर्ज़ा ग़ालिब  


3. ए बुरा वक्त जरा अदब से पेश आ,

क्योंकि वक्त नहीं लगता, वक्त बदलने में ।  

–  मिर्ज़ा ग़ालिब


4. हंस के दुनिया में मरा कोई, कोई रो के मरा ,

मगर ए ज़िन्दगी जी उसने जो कुछ हो के मरा । 

– अकबर इलाहाबादी


5. ऐ ज़ज्बा-ए-दिल गर तू चाहे हर चीज मुक़ाबिल आ जाये,

मंजिल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंजिल आ जाए ।

– बहज़ाद लखनवी 


6. उम्मीद वक्त का सबसे बड़ा सहारा है,

गर हौसला है तो हर मौज में किनारा है । 

– साहिर लुधियानवी


7. सरफ़िरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं,

हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं ।

– मुनव्वर राणा  


8. कभी धुप दे, कभी बदलियां, दिलोजां से दोनों कुबूल हैं,

मगर उस नगर में न कैद कर, जहाँ ज़िन्दगी की हवा न हो ।

– बशीर बद्र


9. मैं खिलौनों की दुकान का पता पूछा क्या,

और मेरे फुल से बच्चे सयाने हो गए ।

– प्रभात शंकर  


10. चलो की अब नए सांचे में ज़िन्दगी ढालें,

अदावतों से परेशां हैं आप भी हम भी  । 

– मोहसिन अहसान


11. आज दिल खोल के रोए हैं तो यूं ख़ुश हैं फ़राज,

चंद लम्हों की यह राहत भी बड़ी हो जैसे । 

– अहमद फ़राज


12. वक्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से,

 किसको मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं ।

– निदा फ़ाजली


13. दौड़ाइए वो रूह की हर ज़र्रा जाग उठे,

उजड़े हुए वतन को गुलिस्तां बनाइए ।

– मोहम्मद अली जौहर 


14. आदमियत हो तो बुनियाद है हर खूबी की,

हो न यह भी तो धरा क्या है फिर इंसा के पास ।  

– जौहर 


15. एक शाम-सी कर रखना, काजल के करिश्मे से,

इक चाँद- सा आँखों में चमकाए हुए रखना ।  

– ‘मुनीर’ नियाज़ी


16. अपने किरदार को मौसम से बचाए रखना,

लौट के फुल में वापस नहीं आती खुशबु ।

 – परवीन शाकिर


17. कल यही ख़्वाब हकीकत में बदल जायेंगे,

आज जो ख़्वाब फ़कत ख़्वाब नज़र आते हैं ।  

– जांनिसार अख्तर


18. पढ़े जो गौर से तारीख के वरक हमने,

आंधियो में भी जलते हुए चराग मिले ।  

– अख्तर अंसारी


19. अकेला पत्ता हवा में बहूत बुलंद उड़ा,

जमीं से पांव उठाओ हवाएं भेजी हैं ।

 –  गुलज़ार


20. तू शाही है परवाज है काम तेरा,

तेरे सामने आसमां और भी हैं ।  

– अल्लामा इक़बाल


21. ख़ुदी का नशेमन तिरे दिल में है,

फ़लक जिस तरह आँख के तिल में है ।  

– अल्लामा इक़बाल


22. ये कह के दिल ने मेरे हौसले बढ़ाये हैं,

गमों के धुप के आगे ख़ुशी के साए हैं ।

 – माहिर-उल-कद्री


23. दिखाई दे न दे लेकिन, हक़ीकत फिर हक़ीकत है,

अंधेरे रोशनी बन कर समुंदर से निकल आये ।

 – फुजैल जाफ़री


24. माना की इस जमीं को न गुलज़ार कर सके,

कुछ ख़ार कम तो कर गए गुजरे जिधर से हम ।

 – साहिर लुधियानवी


25. उलट जाती हैं तदबीरें, पलट जाती हैं तकदीरें,

अगर ढूढें नई दुनिया तो इंसां पा ही जाता है ।

 – फ़िराक


26. जाने क्या कह गया दरिया में उतरता सूरज,

दूर तक हंसती हुई एक लहर नज़र आई है । 

– फ़ातिमा हसन


27. परों में सिमटा, तो ठोकर में था जमाने की,

उड़ा तो एक जमाना मेरी उड़ान में था ।  

– वसीम बेरलवी


28. दिल असीरी में भी आजाद है आजदों का,

वलवलों के लिए मुमकिन नहीं जिंदा होना । 

– ब्रजनारायण चकबस्त


29. हम ख़ाके हिंद से पैदा जोश के आसार,

हिमालिया से उठे जैसे अब्रे-दरियावार ।  

– ब्रजनारायण चकबस्त


30. उमस, अँधेरा, घुटन, उदासी, ये बंद कमरों की खूबियाँ हैं,

खुली रखें ग़र ए खिड़कियाँ तो कहीं से ताज़ा हवा भी आए । 

– सुल्तान अहमद


31. सर पर सात आकाश जमीं पर सात समुंदर बिखरे हैं,

आँखे छोटी पड़ जाती हैं इतने मंजर बिखरे हैं ।  

– राहत इंदौरी


32. सहिली रेट में क्या ऐसी कशिश है की गुहर,

सीप में बंद समुंदर से निकल जाते हैं ।

 – तौकीर तकी


33. इन्हीं जर्रों से कल होंगे, नए कुछ कारवां पैदा,

जो ज़र्रे आज उड़ते हैं गुबारे कारवां होकर ।  

– शफ़क ‘टौंकी’


34. कहने को लफ़्ज दो हैं, उम्मीद और हसरत,

लेकिन निहाँ इन्हीं में है, दुनिया की दास्ताँ ।

 – नातिक लखनवी


35. ग़र दी है तुम्हेँ आक्ल की दौलत भी ख़ुदा ने,

मिट्टी में मिलाओ न जीवन के खज़ाने ।  

– सईद अहमद अख्तर


36. दिल में तुम अपनी बेताबियां ले के चल रहे हो, तो जिन्दा हो तुम,

 नज़र में ख़्वाबों की बिजलियां ले के चल रहे हो, तो जिन्दा हो तुम ।  

– जावेद अख्तर


37. मुझकों य़कीं  है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं,

जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियां रहती थीं ।  

– जावेद अख्तर


38. यकीं हो तो कोई रास्ता निकलता है,

हवा की ओट भी लेकर चराग जलता है । 

– मंजूर हाशमी


39. जिस सूरज की आस लगी है, शायद वो भी आए,

 तुम ए कहो, खुद तुमने अब तक कितने दिये जलाए ।  

– जमीलुद्दीन ‘आली’


40. यूं सज़ा चाँद की झलक तिरे अंदाज का रंग,

यूं फजां महकी कि बदला मिरे हमराज का रंग ।  

– फ़ेज अहमद फ़ेज


41. ये तस्वीरें बजाहिर सकित-ओ-खामोश रहती हैं,

मगर अहले-नज़र पूछें तो दिल की बात कहती हैं ।  

– ‘ब्ज्द’ हैदराबाद दकन


42. हर कदम पर गिरे हैं पर सिखा,

कैसे गिरतों को थाम लेते हैं ।

 – सरदार अंजुम


43. हमने उन हवाओं में जलाए हैं चराग,

जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर । 

– जां निसार अख्तर


44. हम आंधियों के वन में किसी कारवां के थे,

जाने कहाँ से आये हैं जाने कहाँ के थे ।

 – जौन एलिया


45. ये रोशनी का पयंबर है इसकी बात सुनो,

सदाक़तों के सहिफ़े सुना रहा है चराग ।  

– मुश्ताक आज़िज


46. दाय-ए-शाम नहीं मंजिल-ए-शहर भी नहीं,

अजब नगर है यहाँ दिन चले न रात चले । 

– मजरुह सुल्तानपुरी


47. दरिया के तलातुम से बच सकती है कश्ती,

कश्ती में तलातुम हो तो साहिल न मिलेगा । 

– मलिकजादा मंजूर अहमद


48. है थोड़ी दूर अभी सपनों का नगर अपना,

मुसाफ़िरों अभी बाक़ी है कुछ सफ़र अपना ।

 – जावेद अख्तर


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