लघुकथा – कहाँ है परम् सत्य

एक बार ईश्वर ने सभी प्राणियों को बुलाया, लेकिन मानव्  को जान- बुझ कर छोड़ दिया. दरअसल वो इंसान से कुछ छुपाना चाहते थे. ईश्वर चाहते थे की ‘परम सत्य’ इंसान के पहुंच में न आए. इसके लिए उन्होंने सभी प्राणियों से सुझाव मांगे कि आखिर परमसत्य को कंहा छुपाया जाय, जहाँ तक मानव पहुंच ही न पाए. सभी ने सोचना शुरु किया, सबसे पहले चील बोली, ‘प्रभु, उसे मुझे दीजिये, में उसे चाँद पर गड़ा आउंगी’. ईश्वर मनुष्य की क्षमता जानते थे, इसीलिए उन्होंने तुरंत कहा, ‘नहीं, नहीं, चाँद पर पहुंचना बहूत मुश्किल नहीं है. एक दिन इंसान वहाँ पहुंच ही जायेगा’. फिर एक मछली बोली कि में उसे सागर की अतल गहराइयों में ले जा कर दबा देती हूँ. ईश्वर फिर प्रतिवाद किए कि सागर भी मनुष्य के पहुँच से दूर नहीं है. किसी न किसी दिन वह उसकी गहराई को भी नाप ही लेगा.

अबकी बार एक चूहा ने सुझाव दिया, ‘में परम् सत्य को धरती के गर्भ में गड़ा देता हूँ’. इस बार भी ईश्वर का वही जबाब था कि वह जगह भी इंसान के पहुंच से ज्यदा दूर नहीं रहेगी. समस्या विकट थी, सभी प्राणी अपने अपने क्षमता के हिसाब से जबाब दे रहे थे, लेकिन ईश्वर मानव के क्षमताओं से अंजान नहीं थे. वो जानते थे की मानव एक न एक दिन संसार के हर कोने को छु लेगा और उससे कुछ भी छुपा न रह जायेगा.

एक बुढा कछुआ सबकी बात सुन रहा था, सभी इस समस्या को  सुलझाने में असमर्थ थे , तो कछुए ने अपनी महीन आवाज में कहा , मेरे ख्याल से उसे इंसान के दिल के भीतर छुपा देना चहिए, वह वहाँ कभी नहीं झाँकेगा’ और ईश्वर ने ऐसा ही किया.

यह कथा हम ये सिख देता है की – “की जीवन का सबसे बड़ा सत्य, सुख-शांति का रहस्य हमारे भीतर ही छुपा हुआ है, पर उसके तलाश में बाहर भटकते रहते हैं. अगर हम अपने भीतर झाँकने की कोशिश करेंगे, तो सब कुछ मिल जायेगा.”

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