गुरुत्वाकर्षण की खोज करने वाले ब्रिटेन के महान वेज्ञानिक सर आइजेक न्यूटन बहूत ही शांति प्रिय वक्ति थे । बड़ी से बड़ी परेशानी में भी वे अपना धैर्य नहीं खोते थे हर परिस्थिति का सामना शांति एवं धैर्य से करते थे । इनके इस स्वभाव को आप इस प्रसंग से जानिए ……
दोस्तों , बात उस समय की है, जब न्यूटन ट्रिनिटी कालेज में प्रोफेसर थे । उस समय उनकी आयु 51 वर्ष थी तब तक न्यूटन अनेक प्रयोग कर एक वेज्ञानिक के रूप में ख्याति और विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिस्ठा प्राप्त कर चुके थे । वे उस समय एक ऐसी पुस्तक लिखने में व्यस्त थे, जिसमें विगत वर्षों में उनके द्वारा किये गए सभी प्रोयोगों का विवरण था । काम बड़े परिश्रम का था , जिसमे वे दिन रात लगे रहते । एक दिन वे अपने मेज पर कागजों को बिखरा छोड़कर गिरजाघर घर में प्रत:कालीन प्रार्थना के लिए चले गए । उनके जाने के बाद घर में सिर्फ उनका डाइमंड नाम का कुत्ता था ।
न्यूटन की अनुपस्थिति में मेज पर एक चूहा आकर उनके कागज कुतरने लगा । स्वामिभक्त डाइमंड से यह नहीं देखा गया और वह चूहे पर झपट पड़ा । इस से चूहा तो भाग गया, किन्तु मेज पर रखी जलती हुई मोमबत्ती गिर गई और कागज में आग लग गई ।
न्यूटन ने वापस लोटने पर पाया की उनकी वर्षों की साधना राख़ के ढेर में तब्दील हो गई है । यह देख कर भी न्यूटन ने अपने कुत्ते से केवल यही कहा, ‘ओ डाइमंड ! तुझे पता नहीं की आज तूने क्या शेतानी की है ।’ उन्होंने न कुत्ते को मारा न क्रोध जाहिर किया । वे पुन: अपनी पुस्तक को लिखने में उसी उत्साह के साथ जुट गए ।
किसी बड़े नुकसान पर आवेशित न हो कर उसे सह जाना, वह राह खोल देता है जिसपर चलने से उपलब्धियां हासिल होता है । वस्तुतः प्रगति, शांति में ही संभव है.
This quote was so good and should be apply over every one which wants to do some better in his life for another………